________________
६६
प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
माइ महामुणि वीरुजिणु कुलगुरु मह संताणि । तसु मई अप्पं अपिउं जिम सुहु होइ नियाणि ॥ ५१ ॥ यह तरं संजमु लेसि सुअ मेल्हिवि सयलु सिणेहु । ता गोभद्दु अभागिइउ हा धिगु छुड्डउ गेहु ॥ ५२ ॥ याइवनाइगु नेमिजिणु गुणसोहग्गनिवासु । माइ सिद्धिपट्टणि गयउ मेल्हेविणु गिहवासु ॥ ५३ ॥ रहि रहि नंदण वयणु सुणि मा मा मई संतावि । तुह विणु नितु कुण पूरिसइ मुक्काहरणह वावि ॥ ५४ ॥ राहडि पूरिय माइ तई महुकेरी सविवार ।
दिक दियावह जिणभणिय जा तियलोअह सार ॥ ५५ ॥ लहकइंसउं संजमु लियए नंदसेणु मुणिराउ ।
सो संजमुपव्व पडिउ सुअ भोगह कम्मपसाय ॥ ५६ ॥ लाह विणिजु करेसु हउं छेउ माइ चएसु । ईणि असारि देहडिय संजमु सारु गहेसु ॥ ५७ ॥ वच्छ ति नारी दुरकनिहि जाहं न कंतु न पुत्तु । महुत्त नंदण जाइयई हिंव आविडं निरुत्तु ॥ ५८ ॥ वार स माइ सलरकणीय तं मुहुत्त सुपवित्तु । धन्न ति बंधव जणइजण चरणु लेइजइ पुत्त ॥ ५९ ॥ सहसाकारिहिं गहियवड सुमह कंडरिएण ।
नंदण तेण य नरइदुह पामिय भट्ठवएण ॥ ६० ॥ सारखं साटउं मिलिय मुह माइ कहिउ तउ सम्मु । वीरनाहु कि वहओ लेसु चरणु धणु रम्मु ॥ ६१ ॥ लह मणोरह पूजिसई सज्जण होसिइ सोसु । नंदण तुं थाइसि समणु एउ महु कम्महं दोसु ॥ ६२ ॥ पाससासवेयणपमुहवाहि माइ तणु मूलू |
Jain Education International
जीवु तेहिं धंधोलियइ उड्डइ जिम लहु तूल ॥ ६३ ॥ समल देह कप्पड समल रत्तिदिवस गुरुआण । होइसिहं तुं भद्दा भइ परआइत पराण ॥ ६४ ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org