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________________ दूहामातृका सालिभद्द जंपइ जणणि ए महु कहिउ जिणेण । संजमविणु भवभयहरणु ताणु न किजइ केण ॥ ६५ ॥ हसतरोअंता पाहुणउ ताम हसंता होउ । सालिभद्द संजमु लियइ महु बुज्झिअइ पमोहु ॥ ६६ ॥ हारमउडकुंडलकलिउ चडिऊ पुरिसविमाणि । वीरपासि पहुतउ कुमरु जण दिजंतइं दाणि ॥ ६७ ॥ क्षमासमणि भद्दातणई दिकिउ जिणिहि कुमारु । सालिभद्दु बहु तवु करइ आगमु पढइ अपारु ॥ ६८॥ क्षामेविणु जिण मुनिसहिउ अणसुणु गहिउ उवन्नु । सव्वट्ठह सिद्धिहि गयउ सालिभद्द तहिं धन्नु ॥ ६९ ॥ महाविदेहि सु मुणि गहवि केवलनाणु लहेवि । सासयसुकु वि पाविसहि भवियह धम्मु कहेवि ॥ ७० ॥ इह कहियउ ककह कुलउ इकहत्तरि कडुयाह । भवियउ संजमु मणि धरउ पढहु गुणहु निसुणेहु ॥७१ ॥ सालिभद्दकाक समाप्त. दूहामातृका भले भलेविणु जगतगुरु पणमउं जगह पहाणु । जासु पसाई मूढ जिय पावइ निम्मलु नाणु ॥ १ ॥ उँकारिहि उच्चरउ परमिट्ठिहि नवकारु । सिवमंगल कल्लाणकरो जासु वि नामुच्चारु ॥२॥ नवनिहि धम्मिहि संपडए सकचक्कहरिरिद्धि । धम्मु इक्क करि धीर जिव सइ कर आवइ सिद्धि ॥ ३ ॥ मणगयवरु झाणुंकुसिण ताणिउ आणउ ठाउं । जइ भंजेसइ सीलवणु करिसइ सिवफलहाणि ॥ ४ ॥ सिज्झइ तसु सवि कजड जसु हियडइ अरिहंतु । चिंतामणिसारिच्छ जिय एह महाफलु मंतु ॥५॥ धंधइ पडियउ जीव तुहुं खणि खणि तुट्टइ आउ । दुग्गइ कोइ न रस्किसइ सयणु न बंधवु ताउ ॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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