SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः अहरबिंब परवालखंड वरचंपावन्नी । नयणसलूणी य हावभावबहुगुणसंपुन्नी ॥ १६ ॥ भास - इय सिणगार करेवि वर जव आवी मुणिपासि । जोवा कउतिगि मिलिय सुरकिंनर आकासि ॥ १७ ॥ अह नयणकडरकहं आहणए वांकउ जोवंती । हाव भाव सिणगार भंगि नवनवि य करंति । तह वि न भीजइ मुणिपवरो तउ वेस बोलावइ । तवणुतुल तुह देह नाह मह तणु संतावइ ॥ १८ ॥ बारहरिहंत नेहु किणि कारण छंडिउ | एवडु निठुरपणs is मूंसिउ तुम्हि मंडिउ । थूलभद्द पभणेइ वेस अह खेदु न कीजइ । लोहिहि घडियउ हियउ मज्झ तुह् वर्याणि न भीजइ ॥ १९ ॥ मह विलवंतिय उवरि नाह अणुराग धरीजइ । एरिस पावसु कालु सयलु मूसिउ माणीजइ । मुणिव जंप वेस सिद्धिरमणी परिणेवा । मणु लीणउ संजमसिरीहिसुं भोग रमेवा ॥ २० ॥ भास - भइ कोस साचउ कियउ नवलइ राचइ लोउ । मूं मिल्हिवि संजम सिरिहि जब रात मुणिराउ ॥ २१ ॥ उवसमरसभरपूरियड रिसिराज भणेह | चिंतामणि परिहरवि कवणु पत्थरु गिइ | तिम संजमसिरि परिवएवि बहुधम्मसमुज्जल । आलिंगइ तुह कोस कवणु पसरंतमहाबल ॥ २२ ॥ पहिलउ हिवडा कोस कहइ जुत्र्वणफलु लीजइ । तयणंतरि संजमसिरीहि सुह सुहिण रमीजइ । मुणि बोलइ जि मह लियड तं लियउ ज होइ । कवणु सु अच्छइ भुवणतले जो मह मणु मोहइ ॥ २३ ॥ भास - इणपरि कोसा अवगणिय थूलभद्दमुणिराइ । तसु धीरिम अवधारिकरि चमकिय चित्ति सुहाइ ॥ २४ ॥ अइबलवंतु सु मोहराउ जिणि नाणि निघाडिउ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy