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प्राचीनगूजर काव्यसङ्ग्रहः
जिहां छात्र पढई चउसाल, तिसी नेसाल; जिहां अध्यात्मतणी वात दृढ, तिसां अनेक मढ; जिहां लोक जिमई अपार, तिसा सनूकार; जिहां पाणी पियइ सर्व, तिसी पर्व; जिहां रमलि कीजई स्वभावि, तिसी वावि; जिहां आनंद हुआ, तिसा कुआ; पद्मवनखंडमंडित प्रवर, महाकाय सरोवर; जिहां रंगि कीजई रयवाडी, तिसी वाडी; जिहां सीतल फुरकइ पवन, तिसां पावलियां वन; इसुं अन्यायरहई दाटण, पृथ्वीपीठि प्रसिद्ध पुहिठाणपुर पाटण ।
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तीणि पाटणि राजाधिराज पृथ्वीचंद्र इसिई नामिदं राज्य प्रतिपालइ, भुजबलकरी वइरी वर्ग टालई । जीणि राजा गौडदेशनउ राउ गांजिउ, भोटनउ भांजिउ; पंचालनउ राउ पालउ पुलई, कानडादेसनउ कोठारि रुलई, ढोरसमुद्र ढोयणां ढोयइ, बाबरउ बारि बइठउ टगमग जोयह; चौडनउ दंडि चांप, कास्मीर कांपिउ; सोरठीयउ सेवइ, तुडि न करई देवई; अंगदेसन अंगि ओलाइ, जालंधरनउ जीवितव्यकारणि रिगइ; घणुं किस्युं कहीयह, रिपुकुलकालकेतु शरणागतवज्रपंजर पंचम लोकपाल । जीणं रिपु सर्वे निट्यां दुर्ग सर्वे आपणा कीधा, वयरीनई देसवटा दीधा । इसिउं निःकंटक साम्राज्य प्रतिपालइ । तेह नरेश्वरनई बुद्धिनिधान, परमहंसनामि प्रधान; जेउ सहिजिइं रूपिडं रूडउ, पाटरहिं नहीं कूडउ; राउलउ अर्थ सारइं, लोक ऊगारइ, वयर विग्रह वारइ; पालइ दीन दुस्थित निराधार, करइ साधुजन उपगार; शस्त्रि शास्त्र कुशल अपार, गुहिर गंभीर, अतिहिं धीर; मुहि मीठउं भाषई, काज कीधां जि दाह; चिहुं बुद्धितणडं निधान, सविहुं अमात्यमाहि मूलिगु प्रधान; रायत प्रतिशरीर, इसिउं ते मंत्रीश्वर; नरेश्वररहई, शिवमय सुषमय कल्याणमय दिवस अतिक्रमई ।
अन्यदा प्रस्तावि राजा रातितणई प्रस्तावि स्वप्न एक दीठउ, जेहन फल छइ अत्यंत मीठउं । किसउं ते स्वप्न । इसिउं जाणइ नरेश्वर सुवर्णवर्णकांति, देवरहई मन भ्रांति; पलकते नेउरि झलकते कुंडलि हाथि वरमाल, अर्द्धचंद्रसमभाल; रूपि विशाल, इसी बालदेवी देषइ भूपाल । जेतलइ तेहतणी वरमाला कंठिकंलि लागी, तेतलई रायनई निद्रा भागी; जागिउ नरेश्वर चींवर अलवेसर । किसिउ स्वप्नतणउ घटइ विचार, तेतलइ प्रभातावसरिउ मांगलिकशंख तणउ ओंकार हुआ तिवलितणा दोंकार, मृदंगतणा धकार; भट्टतणा मांगलिक्यध्वनि, राजा आनंदिउ मनि; शुभहेतु स्वप्नतणउ मनि विचार धरी, पालंक परिहरी; क्षणु एक राजा मल्लाषाडइ आव्या । मल्ल
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