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________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अहनिसि रायकुंयारिसहस सेवइं पय भत्तिहिं । जाणइ नाणनिहाण माण पुण नाणइ चित्तिहिं । दिणदिकिय देकिय आवतु द्रमक साधु सा ऊठि करी । अभिगमण नमण वंदण विणय सुणइ वयण आणंदभरी ॥५॥ वाणारसिनयरीनरिंद नामिहिं संवाहण । पुर अंतेउर पवर अवर हय गय बहु साहण । कन्नासहस सुरूव अछइ पुण पुत्त न इक्कय । राय पत्त पंचत्त लच्छि लिवइ रिउ ढुक्कय । नेमित्तिवयणि राणीउयरि कुंयर जाणि पहिहिं चविउ । तिणि अंगवीरि अरि त्रासुवी रजबंध सहु राहविउ ॥ ६॥ कियसिंगारउदार अंग आरीसइ पिरकइ । पाणी पडी मुंद्रडी सयल तणु तिणिपरि दिकइ । अंतेउरआवासि पासि भववासि विरत्तउ । भरहेसर वरझाण नाण केवल संपत्तउ। एउ चकवहि विसयारसिहिं रमइ रंगि जणु इम गणइ । तसु अप्पकज अप्पिहिं सरिउ किं परजणजाणावणइ ॥७॥ सेणिय करइ पसंस दुमुहदुव्वयणि निवारइ । रायरिसि कासग्गि रहिउ रणि अरिअण मारइ । सिरककजि सिरि हत्थ घल्लि संजम संभालइ । मनिहिं बद्ध बहु पाप आप आपिहि परकालइ । गति कहइ वीर सत्तम नरय मगहराय अचरिज भयउ । तिणि समइ देव जय जय भणइं प्रसनचंद केवलि जयउ ॥८॥ भरहसरिसु बल झुज्झि बुज्झ संजम अणुसरयु । कुण वंदइ लहुभाय ठाय तिणि कासग्ग करयु । इह ऊपानं नाण माण धरि वच्छर रहियु । सहइ भुक बहु दुक तह वि न हु केवल लहियु। नियबहिनिबंभिसुंदरिवयणि मयमयगल जव परिहरइ । रिसहेसरनंदणबाहुबलि सयल कन्ज तरकणि सरइ ॥९॥ कहिय इंदि अतिरूप सुणिय सुर बंभणवेसिहिं। पुहवि पत्त मजणइ रूप पेकई सुविसेसिहिं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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