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उवएसमालकहाणयछप्पय
उवएसमालकहाणयछप्पय
छप्पयछंद विजय नरिंद जिणिवीरहत्यिहिं वय लेविणु । धम्मदासगणि नामि गामि नयरिहिं विहरइ पुणु । नियपुत्तह रणसीहराय पडिबोहणसारिहिं ।
करइ एस उवएसमालजिणवयणवियारिहिं। सयपंचच्यालगाहारयणमणिकरंड महियलि मुणउ । सुहभावि सुद्ध सिद्धतसम सवि सुसाहु सावय सुणउ ॥ १॥ रिसहनाह निरहार वरिस विहरिउ अपमत्तउ । वडमाण छम्मास करइ तप गुणहि निरुत्तउ । अवर वि जिणवर दिक लेवि तव तवइ सुनिम्मल । तिणि कारणि उपदेशमाल धुरि तप किय बहुफल । नियसत्तिसारि अणुसारि इणि तपआदर अहनिसि करउ । भो भविय भावि जम्मणमरणदुहसमुद्द दुत्तर तरउ ॥२॥
सव्व साहु तुम्हि सुणउ गणउ जग अप्पसमाणउ । कोह कह वि परिहरउ धरउ समरस सपराणउ। तिहुयणगुरु सिरिवीर धीर पण धम्मधुरंधर । दासपेसदुव्वयण सहइ घणदुसह निरंतर । नरतिरियदेवउवसग्ग बहु जह जगगुरु जिणवर खमइ । तिम खमउ खंति अग्गलि करी जेम्म रिउदलबल नमइ ॥३॥
सव्व सुणइ जिणवयण नयणउल्हासिहिं गोयम । जाणइ जइ वि सुयत्थ तह वि पुच्छइ पहु कहु किम । भद्दकचित्त पवित्त पढम गणहर सुयनाणी । न करइ गव्व अपुव्व करवि मनि मन्नइ वाणी। छंडीइ मान ज्ञानहतणउ विणउ अंगि इम आणीइ । गुरुभत्ति कह वि नवि मिल्हीइ ग्रंथकोडि जइ जाणीइ ॥ ४ ॥ दहिवाहणनिवधूय वीरजिणपढमपवत्तणि । चंदनबाल विसाल गुणिहिं गजइ गुहिरप्पणि ।
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