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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः वइसाहह विहसिय वणराइ मयणमित्तु मलयानिलु वाइ। फुट्टि रि हियडा माझि वसंतु विलवइ राजल पिरिकउ कंतु ॥ २९ ॥ सखी दुक वीसरिवा भणइ संभलि भमरउ किम रुणझुणइ । दीस पंच थिरु जोव्वणु होइ खाउ पियउ विलसउ सहु कोइ ॥ ३० ॥ रमणि पसंसइ राजल कन्न जीह कंतु वसि ते पर धन्न । जसु प्रिउ न करइ किमइ मुहाडि सा हउं इक्क ज भुंडनिलाडि ॥३१॥ जिट्ठ विरहु जिम तप्पइ सूरु घणविओगि सुसियं नइपूरु । पिरिकउ फुल्लिउ चंपइविल्लि राजल मूछी नेहगहिल्लि ॥ ३२ ॥ मूछी राणी हा सखि धाउं पडियउ खंडइ जेवडु घाउ । हरिय मूछ चंदणपवणेहिं सखि आसासइ प्रियवयणेहिं ॥ ३३ ॥ भणइ देवि विरती संसार पडिखि पडिखि मइ जावसार । नियपडिवन्नउं प्रभु संभारि मइ लइ सरिसी गढि गिरिनारि ॥ ३४॥ आसाढह दिदु हियउं करेवि गज्जु विज्जु सवि अवगन्नेवि । भणइ वयणु उग्रसेणह जाय करिसु धम्मु सेविसु प्रियपाय ॥ ३५॥ मिलिउ सखी राजल पभणंति चिणय जेम नमिरिय खजंति । अउगी अच्छि सखि झखि मन आल तपु दोहिल्लउ त सुकुमाल॥३६॥ अठ भव विलसिउ प्रियह पसाइ किमइ जीवु सखि सुख न ध्राइ । हिव प्रिय सरिसउं जीविय मरणु इण भवि परभवि निमि जु सरणु॥३७॥ अधिक मासु सवि मासहि फिरइ छहरितुकेरा गुण अणुहरइ । मिलिवा प्रिय ऊबाहुलि हूय सउ मुकलाविउ उग्रसेणधूय ॥ ३८ ॥ पंच सखीसइ जसु परिवारि प्रिय ऊमाही गइ गिरिनारि । सखीसहित राजल गुणरासि लेइ दिक परमेसरपासि ॥ ३९॥ निम्मल केवलनाणु लहेवि सिडी सामिणि राजलदेवि । रयणसिंहटॅरि पणमवि पाय बारह मास भणिया मइ भाय ॥ ४०॥ नेमिकुमरु सुमरवि गिरनारि सिडी राजल कन्नकुमारि ।
इति श्रीविनयचन्द्रसूरिकृतनेमिनाथचतुष्पदिकाः ॥
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