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________________ नेमिनाथचतुष्पदिका मगसिरि मग्गु पलोअइ बाल इणपरि पभणइ नयणविसाल । जो मइ मेलइ नेमिकुमार तसुणी बेल वहउ सविवार ॥ १४ ॥ एहु कदाग्रहु तउ सखि मिल्हि करिसि काइ तिणि नेमिहि हिल्लि। मंडि चडाविउ जो किर मालि हे हे कु करइ टोहणकालि ॥ १५॥ अठभव सेविउ सखि मइ नेमि तसु ऊमाहउ किम न करेमि । अवगन्नेसइ जइ मइ सामि लग्गी अछिसु तोइ तसु नामि ॥ १६ ॥ पोसि रोस सवि छंडिवि नाह राखि राखि मइ मयणह पाह । पडइ सीउ नवि रयणि विहाइ लहिय छिद्द सवि दुक अमाइ ॥ १७ ॥ नेमि नेमि तू करती मुद्धि जुब्वणु जाइ न जाणिसि सुद्धि । पुरिसरयणभरियउ संसारु परणि अनेरउ कुइ भत्तारु ॥ १८ ॥ भोली तउ सखि खरी गमारि वरि अच्छंतइ नेमिकुमारि । अन्नु पुरिसु कुइ अप्पणु नडइ गइवरु लहिउ कु रासभि चडइ ॥१९॥ माहमासि माचइ हिमरासि देवि भणइ मइ प्रिय लइ पासि । तइ विणु सामिय दहइ तुसारु नवनवमारिहि मारइ मारु ॥ २० ॥ इहु सखि रोइसि सह अरनि हत्थि कि जामइ धरणउ कन्नि । तउ न पती जिसि माहरी माइ सिद्धिरमणिरत्तउ नमि जाइ ॥ २१ ॥ कंति वसंतइ हियडामाहि वाति पहीज किमह लसाइ । सिद्धि जाइ तउ काइत बीह सरसी जाउ त उग्रसेणधीय ॥ २२॥ फागुण वागुणि पन्न पडंति राजलदुरिक कि तरु रोयंति। गन्भि गलिवि हउँ काइ न मूय भणइ विहंगल धारणिधूय ॥ २३ ॥ अजिउ भणिउ करि सखि विम्मासि अछइ भला वर नेमिहि पास । अनु सखि मोदक जउ नवि हुँति छुहिय सुहाली कि न रुचंति ॥२४॥ मणह पासि जइ वहिलउ होइ नेमिहि पासि ततलउ न कोइ । जइ सखि वरउं त सामल धीरु घणविणु पियइ कि चातकु नीर ॥२५॥ चैत्रमासि वणसह पंगुरइ वणि वणि कोयल टहका करइ । पंचबाण करि धनुष धरेवि वेझइ मांडी राजलदेवि ॥ २६ ॥ जुइ सखि मातउ मासु वसंतु इणि खिलिजइ जइ हुइ कंतु । रमियइ नव नव करि सिणगारु लिजइ जीवियजुब्वणसारु ॥२७॥ सुणि सखि मानिउ मुझु परिणयणु नवि ऊवरि थिउ बंधववयणु । जइ पडिवन्नइ चुक्कइ नेमि जीविय जुव्वणु जलणि जलेमि ॥ २८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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