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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः
नेमिनाथचतुष्पदिका
सोहगसुंदरु घणलायन्नु सुमरवि सामिउ सामलवन्नु । सखि पति राजल चडि उत्तरिय बारमास सुणि जिम बजरिय ॥१॥ नेमिकुमरु सुमरवि गिरनारि सिद्धी राजल कन्नकुमारि ॥ आंकिणी ॥ श्रावणि सरवणि कडुयं मेहु गज्जइ विरहिरि झिज्झइ देहु । विज्जु झबक्का रकसि जेव नेमिहि विणु सहि सहियइ केम ॥२॥ सखी भणइ सामिणि मन झुरि दुजणतणा म वंछित पूरि । गयउ नेमि तउ विणठउ काइ अछइ अनेरा वरह सयाइ ॥३॥ बोलइ राजल तउ इहु वयणु नत्थी नेमिसमं वररयणु। धरइ तेजु गहगण सवि ताव गयणि न उग्गइ दिणयरु जाव ॥४॥ भाद्रवि भरिया सर पिकेवि सकरुण रोअइ राजलदेवि। हा एकलडी मइ निरधार किम ऊवेषिसि करुणासार ॥५॥ भणइ सखी राजल मन रोइ नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ । सिंचिय तरुवर परि पलवंति गिरिवर पुण कड डेरा डंति ॥ ६ ॥ साचउं सखि वरि गिरि भिजंति किमइ न भिजइ सामलकंति । घण वरिसंतइ सर फुटुंति सायरु पुण घणुओह डुलिंति ॥ ७ ॥ आसोमासह अंसुप्रवाह राजल मिल्हइ विणु नमिनाह । दहइ चंदु चंदणहिमसीउ विणु भत्तारह सउ वि वरीउ ॥८॥ सखि नवि खीना नेमिहिरेसि मन आपणपउं तउं खय नेसि। जिणि दिरकाडिउ पहिलउं छेहु न गणिउ अठ्ठभवंतरनेहु ॥९॥ नेमि दयालू सखि निरदोसु कीजइ उग्रसिणऊपरि रोसु । पसुयभराविउ मूकउ वाडु मुझु प्रियसरिसउ कियउ विहाडु ॥ १०॥ कत्तिग क्षित्तिग ऊगइ संझ रजमति झिझिउ हुइ अतिझंझ । राति दिवसु अछइ विलवंत वलि वलि दय करि दयकरि कंत ॥११॥ नेमितणी सखि मूकि न आस कायरु भग्गउ सो घरवास । इमइ इसी सनेहल नारि जाइ कोइ छंडवि गिरनारि ॥ १२ ॥ कायरु किम सखि नेमिजिणंदु जिणि रिणि जित्तउ लकु नरिंदु । फुरइ सासु जा अग्गलि नास ताव न मिल्हउं नेमिहि आस ॥ १३ ॥
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