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रेवंतगिरिरासु गहगण ए माहि जिम भाणु पव्वयमाहि जिम मेरुगिरि । बिहु भुयणे तेम पहाणु तित्थंमाहि रेवंतगिरि ॥९॥ धवलधय चमर भिंगार आरत्ति मंगलपईव । तिलय मउड कुंडल हार मेघाडंबर जावियं ए ॥ १० ॥ दियहिं नर जो पवर चंद्रोय नेमिजिणेसरवरभुयणि । इह भवि ए भुंजवि भोय सो तित्थेसरसिरि लहइ ए ॥ ११ ॥ चउविहु ए संघु करेइ जो आवइ उजिंतगिरे। दिविस बहू रागु करेइ सो मुंचइ चउगइगमणि ॥ १२ ॥ अठविह ए जय करंति अठाई जो तहिं करइ ए। अठविह ए करम हणंति सो अठभवि सिज्झइ ए॥ १३ ॥ अंबिल ए जो उपवास एगासण नीवी करई ए। तसु मणि ए अछइं आस इहभव परभव विवहपरे ॥ १४ ॥ पेमिहि मुणिजण अन्नह दाणु धम्मियवच्छल करई ए। तसु कही नहीं उपमाणु परभाति सरण तिणउ ॥ १५॥ आवइ ए जे न उजिंति घर धरइ धंधोलिया ए। आविही ए हीयह न जंति निप्फलु जीविउ सासुतणउं ॥१६॥ जीविउ ए सो जि परि धन्नु तासु संमच्छर निच्छणु ए। सो परि ए मासु परि धन्नु बलि हीजइ नहि वासर ए॥ १७ ॥ जहिं जिणु ए उजिलठामि सोहगसुंदर सामलु ए। दीसइ एतिहणसामि नयणसलूणउं नेमिजिणु ॥ १८ ॥ नीझरण चमर ढलंति मेघाडंबर सिरि धरीइं। तित्थह एसउ रेवंदि सिंहासणि जयइ नेमिजिणु ॥ १९ ॥ रंगिहि ए रमइ जो रासु सिरिविजयसेणिस्तूंरि निम्मविउ ए। नेमिजिणु तूसइ तासु अंबिक पूरइ मणि रली ए ॥ २० ॥
(चतुर्थ कडवम् ) ॥ समत्तु रेवंतगिरिरासु ॥
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