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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः तेजपालि निम्मविउ तत्थ तिहुयणजणरंजणु । कल्याणउ तर तुंगु भुयणु लंघिउगयणंगणु ॥ १७ ॥ दीसइ दिसि दिसि कुंडि कुडि नीझरणउमालो। इंद्रमंडपु देपालि मंत्रि उडरिउ विसालो ॥ १८ ॥ अइरावणगयरायपायमुद्दासमटंकिउ। दिठ्ठ गयंदमु कुंड विमलुनिज्झरसमलंकिउ ॥ १९ ॥ गयणगंग जं सयलतित्थअवयारु भणिजइ । परकालिवि तहि अंगु दुक जलअंजलि दिजइ ॥ २० ॥ सिंदुवारमंदारकुरबककुंदिहि सुंदरु। जाइजूइसयवत्तिविन्निफलेहि निरंतर ॥ २१ ॥ दिट्ठ य छत्रसिलकडणि अंबवणु सहसारामु । नेमिजिणेसरदिकनाणनिव्वाणह ठामु ॥ २२॥
(तृतीयं कडवम् ) गिरिगरुयासिहरि चडेवि अंबजंबाहिं बंबालिउं ए। संमिणी ए अंबिकदेविदेउलु दीठु रम्माउलं ए॥१॥ वजइ ए तालकंसाल वजइ मदल गुहिरसर । रंगिहिं नच्चइ बाल पेखिवि अंबिकमुहकमलु ॥२॥ सुभकरु ए ठविउ उच्छंगि विभकरो नंदणु पासिक ए। सोहइ ए ऊजिलसिंगि सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥३॥ दावइ ए दुकहं भंगु पूरइ ए वंछिउ भवियजण । रकइ ए चउविहु संघु सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥४॥ दस दिसि ए नेमिकुमारि आरोही अवलोइउं ए। दीजई ए तहि गिरनारि गयणंगणु अवलोणसिहरो ॥५॥ पहिलइ ए सांबकुमारु बीजइ सिहरि पज्जून पुण । पणमई ए पामइं पारु भवियण भीसण भवभमण ॥६॥ ठामि ठामि रयणसोवन्न बिंब जिणेसर तहिं ठविय। पणमइ ए ते नर धन जे न कलिकालि मलमयलिया ए॥७॥ जं फलु ए सिहरसमयअठ्ठावयनंदीसरिहिं ।। तं फलु ए भवि पामेइ पेखेविणु रेवंतसिहरो ॥ ८॥
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