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रेवंतगिरिरासु
हरसवसिण घणकलस भरिवि ति न्हवणु करंतह । गलिउ लेवमु नेमिबिंबु जलधार पडतह ॥२॥ संघाहिवु संवेण सहिउ नियमणि संतविउ । हा हा घिगु धिगु मह विमलकुलगंजणु आविउ ॥ ३ ॥ सामियसामलधीरचरण मह सरणि भवंतरि । इम परिहरि आहार नियम लइउ संघधुरंधरि ॥४॥ एकवीसि उपवासि तामु अंबिकदिवि आविय । पभणइ स पसन्न देवि जय जय सद्दाविय ॥५॥ उठेविणु सिरिनेमिबिंबु तुलिउ तुरंतउ । पच्छलु मन जोएसि वच्छ तुं भवणि वलंतउ ॥ ६ ॥ णइ वि अंवि"""कंचण"बलाणइ ।
"बिंबू मणिमउ तहिं आणइ ॥७॥ पढमभवणि देहलिहि देउ छुडि पुडि आरोविउ । संघाहिवि हरिसेण तम दिसि पच्छलु जोइउ ॥ ८॥ ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमिकुमारो। कुसुमवुट्टि मिल्हेवि देवि किउ जइजइकारो॥९॥ वइसाहीपुंनिमह पुंनवतिण जिणु थप्पिउ । पच्छिमदिसि निम्मविउ भवणु भवदुहतर कप्पिउ ॥१०॥ न्हवणविलेवतणीय वंछ भवियणजण पूरिय। संघाहिव सिरिअजितुरतनु नियदेसि पराइय ॥ ११॥ सयलवित्ति कलिकालि कालकलुसे जाणवि छाहिउ । झलहलंति मणिबिंबकंति अंबिकुरुं आइय ॥ १२ ॥ समुद्दविजयसिवदेविपुत्तु जायवकुलमंडणु। जरासिंधदलमलणु मयणभडमाणविहंडणु ॥ १३ ॥ राइमईमणहरणु रमणु सिवरमणि मणोहरु । पुनवंत पणमंति नेमिजिणु सोहगुसुंदरु ॥ १४ ॥ वस्तपालि वरमंति भूयणु कारिउ रिसहेसरु । अठ्ठावयसंमेयसिहरवरमंडपुमणहरु ॥ १५ ॥ कउडिजकु मरुदेवि दुह वि तुंगु पासाइउ। धम्मिय सिरु धूणंति देव वलिवि पलोइउ ॥ १६ ॥
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