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________________ उवएसमालकहाणयछप्पय कियसिणगार सणंकुमार नरनाह निरंतरु । हकारइ अत्थाणि जाणि आवि देसंतरु। खणि देहि हाणि इम वयण सुणि रज छंडि संजम गहिउ । सयसत्त वरिस चारित्तधर सहइ रोग लडिहिं सहिउ ॥ १० ॥ करइ रज कंपिल्लनयरि छख्खंडनरेसर । जाइसमरणि जाणि पुन्वभवबंधव मुणिवर । बोहइ बहु उवएस सहसि पुण तोइ न बुज्झइ। भोग भवंतरि बड तिण विसयारस मुज्झइ । सो बंभदत्त बंभणि किउ अंध अधिक पातग करी । संपत्तउ सत्तउ सत्तमनरगि सु जि साधु पत्त सिद्धहं पुरी ॥११॥ सेणियकुलि कोणियनरिंदसुय निवइ उदाइय। पाडलिपुरि गुरुभत्त रत्त पोसहसामाइय। खत्तियपुत्त जाणि तिणि देसह कहिउ । उज्जेणिं पज्जोयराय ओलगइ अणिदिउ । इणि वयरि अवर अलहंत छल वरिस बार व्रत धारयुं । तिणि दुठि तह वि अवसर लहवि निव उदाइ निसि मारयु ॥१२॥ चंपापुरि सुनार नारिसयपंचह सामी। सासिमत्त अहरत्ति गेह नवि छंडइ कामी । तिणि मारी इक नारि अवरनारिहिं सो मारीउ । पढम भज नररूपि विप्पकुलि सो पुण नारीउ। सयपंच भज जे चोर तस घरणि इकु सा नारि हय । पहुवीरपासि पुच्छइ सु नर जा सा सा सा विप्पधूय ॥ १३ ॥ कोसंबी ससि सूर वीर वंदइ सविमाणय । मिग्गवइ महासत्ति जंत चंदण नवि जाणइ। निसि एकल्ली जाइ पाइ लग्गेवि खमावइ । पडिवजइ नियदोस रोस मिल्हइ मिल्हावइ । सुहभावि शुद्ध केवल भयु भुजग विनाणिहि जाणियउ। जिम पवत्तणी स भवपार गय विनय अंगि तिम आणियउ ॥१४॥ जंबूकुमर विलासभवणि पडिबोहइ भजह । प्रभव पंचसयजुत्त पत्त तहिं परधणकजह । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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