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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः चउदीसि मेलीउ संघु आरीठवणउं विविहपरे । गोतमसामिहिं मंत्रु आषात्रीजइ दिणी दीइए। जोगवहाणु वहेवि अंग इग्यारइ सो पढए । त संजमि रणि जीतु सयरह चुकउ पंचसरो॥ गुजरधर मेवाडि मालव ऊजेणी बह य। सावय कीय उवयार संघपभावण तहिं घणी य॥ सात्रीसइ आषाडि लखमण भयधरसाहुसूओ। छयणीनयरमझारि आरिठवणउं भीमि किओ ॥ कमलसूरि नियपाटि सई हथि प्रज्ञासुरि ठवीओ। षमीउ षमावीउ जीवु अणसणि अप्पा सूधु कीओ॥ षणि पहुत्तउ सुरलोइ गणहरु गंगाजलविमलो। तासु सीसु चिरकालु प्रतपउ प्रज्ञातिलकसूरे ॥ जिणसासणिनहचंदु सुहगुरु भवीयहं कलपतरो। ता जगे जयवंत उम्हाउ जां जगि ऊगइ सहसकरो। तेरत्रिसठइ रासु कोरिंटावडि निम्मिउ । जिणहरि दिंतसुणंतं मणवंछिय सवि पूरवउ ॥
कठूलीरासः समाप्तः ॥ सालिमहकक
भलि भंजणु कम्मारिबल वीरनाहु पणमेवि । पउमु भणइ ककरकरिण सालिभद्दगुण केइ ॥ १ ॥ कत्थ वच्छ कुवलयनयण सालिभद्द सुकमाल । भद्दा पक्षणइ देव तुह कह थिउ इत्तियवार ॥२॥ कारनामयनीरनिहि समवसरणि ठिउ सामि । अज्जु माइ मई वंदियउ वीरनाहु सिवगामि ॥ ३॥ खरचं कुड्डु ता पुत्त कहि का देसण किय वीरि। कवणु अत्थु वखाणिइउ कंचणगोरसरीरि ॥४॥ खारसमुद्दह आगलउ माइ कहिउ संसारु । संजमपवहणहीण तसु किमइ न लब्भइ पारु ॥५॥
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