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________________ सालिभद्दकक गयममत्त वीरियपवर जे जगि पुरिसपहाण । सालिभद्द भद्दा भइ संजमु सोहइ ताण ॥ ६ ॥ गारववज्जिउ विन्नवउं काइउ मग्गउं माइ । जइ मोकलउ तर तु लियउं तुम्हह पाय पसाई ॥ ७ ॥ घणकुंकुमचंदणरसिण तुह तणु वासिउ वच्छ । वह परीसह किम सहिसि मुणि गंगाजलसच्छ ॥ ८ ॥ घाइ पीलिय पंचसई खंद्गरिहि सीस । साहु माइ दुस्सहु सहई एरिस धम्म जिगीस ॥ ९ ॥ नवि वड लिज्जइ तरुणपणि सालिभद्द सुकुमाल । महु कुलमंडण कुलतिलय कुलपईव कुलबाल ॥ १० ॥ नाउं गव्विहिं कुलताई पाविजइ भवछेउ । माइ मरीचि भव भमिउ वडमाणजिणुदेउ ॥ ११ ॥ चरणु लेसिजइ पुत्त तुहु नंदण नीयपवीण । अंती भद्दा भणई मई किम मेल्हिसि दीण ॥ १२ ॥ चारुचक्किबलदेव तह वासुदेव बलवंत । माइ तडि यि परियणह कड्डिउ लेह कयंतु ॥ १३ ॥ छण मइलंछणसमवयण तुह भज्जा बत्तीस । ते विलवंती पेमभरि किम करिसि कुलईस ॥ १४ ॥ छारु जेम उड्डुइ सयलु अंतेउरु घरसारु । माइ जीवु जउ संचरइ छंडेविणु ढंढारु ॥ १५ ॥ जणणि भणइ जां बालपणु तां पुत्तह पडिबंधु । तान्न बुल्ला विअ बहु उन्नाड कंधु ॥ १६ ॥ जाणिउ देह असारबलु भरहिं मूक मोहु । ताव माइ तमु विहिडियउं केवलनाण निरोहु ॥ १७ ॥ झलकंतर कंचणघडिउ सत्तभूमिपासाउ | विवह कोडाको घण कहि कोइ ऊणउ ठाउ ॥ १८ ॥ झाणानलि जिणि कम्मवणु बालिउ गहिउं नाणु । वीरनाहु महु हिव सरणि रिद्धि रमणि अपमाणु ॥ १९ ॥ नरवइ सेणिउ तुम्ह पहु सुरगोभद्दु सुताउ । नि नवलं आभरणु कहि को चित्ति विसाउ ॥ २० ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only ६३ www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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