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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नाइकु सेणिउ तुम्ह महु जइ किरि कहिइउ माइ । ता धणु कंचणु गेहबलु खण वि न चित्ति सुहाइः॥ २१ ॥ टलटलेसि धम्मत्थ पुण धम्मगहिल्ला बाल । धम्म करेवा महु समउ तुहु धणुरकण बाल ॥ २२ ॥ टालिसि चरण म माइ मई देइ महावयसिक । वडमाणजिणवरकिरिहिं पुन्निहिं लब्भइ दिक ॥ २३॥ ठणकइ पुत्त सु चित्ति महु पुत्तविहूणिय नारि । विहवह मुच्चइ दुहु सहइ दीणी परघरबारि ॥२४॥ ठामि ठामि जिउ हिंडिइउ भव चउरासीलक । माइ जि सहिया नरयदुहु ताह कु जाणइ संख ॥ २५ ॥ डरपिसि सुणियइ सीहसरि निसुणिसि सिवफिक्कार । भुस्किइंउ तिसिइउ वच्छ तुह किम हिंडिसि नरसार ॥ २६ ॥ डालिहि चडियउ डालिसउ माइ म हल्लावेउ । पच्छइ कहि हउं चरणु कहि वडमाणुजिणदेउ ॥ २७ ॥ ढलई चमर वर पुत्त तुह सीसि धरिजइ छत्तु । मणिसीहासणि बइठणउं किणि कारणि वइचित्तु ॥ २८ ॥ ढाउ विलग्गउ माइ महु सिवपुरि रजहरेसि । वोलावउ ठिउ वीरजिणु रहिसु न भवह किलेसि ॥ २९ ॥ नवउं अंतेउरु नवउं घर नवजोवणु नवरंगु । सालिभहु नवकणयतणु ढल करि चरणपसंगु ॥ ३०॥ नाणु रसायणु करिसु हउं कम्मिधणदाहेण । तिणि आऊरिसु माइ तणु जरा न ढुक्कइ जेण ॥ ३१॥ तरुअरतलि आवासु मुणि भिरकह भोयणु पाणु । भूमंडलि आसणु सयणु वच्छ चरणु दुहठाणु ॥ ३२॥ तालउ भंजिवि पइसरह माइ गेहि जमराउ । छुट्टइ बालु न वुड्ड जणु पडइ अचिंतिउ घाउ ॥ ३३ ॥ थल डूंगर पाहण सघण कक्कर कंट तुसार । पाणहवजिउ गुरि सहिउ हिंडिसि केम कुमार ॥ ३४॥ थाहररहि न मझु मणु माइ कहिउ तउ सम्म । वीरनाहु जिणु ववहरउ लेसु चरणु धणु धम्मु ॥ ३५॥
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