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________________ सालिभद्दकक तउ गुरि मूकीउ रयहरणु कीधउ सीहु करालो। वाघह जं ता दूरि थीउ हरिसीउ ए हरिसीउ ए हरिसीउ नयरु सबालो॥ इत्थंतरि मुणि गयणठिय तसु सिरि पाडीय ठीब । हुउ कमालीउ कालमुहो लोकिहिं ए लोकिहिं ए लोकिहिं वाईय बूंब ॥ छंडीउ माणु कवालधरो धाईउ वंदइ पाय । खमिखमि सामि पसाउ करी जीतउं एजीतउं ए जीतउ तई मुणिराय॥ वस्त–ताव संधीउ ताव संधीउ ठीब मंतेण । गणहरि करि कम्मालीयह भिखभरीउ अप्पीउ मुहत्तिण । रामिहिं जिम वायसह इक्कु निजुत्त सु हरीउ सत्तीण । धारावरसि कयंतसमि भिंडीउ डिंभीउ ताम । प्रतपउ कोडि वरीस जिनउदयसूरिरवि जाम ॥ चड्डावलिहिं विहरीउ प्रभु पहुतउ मेवाडि । पासु नमसीउ नागदहे समोसरीउ आहाडि ॥ जालु कुद्दालिय नीसरणी दीवउ पारउ पेटि। वादीय टोडरु पइ धरए पहुत्तउ षमणउ षेटि । केवलिभुकति न जिणु भणए नारिहिं सिद्धि सजाणि । उदयसूरि षमणउ षलीउ जयत ल रायअथाणि ॥ केवलिभुकति म भंति करे नारि जंति ध्रुव सिद्धि । तिसमयसिद्धा वजि जीय लीइं आहारु विसुड ॥ षीच पीर दीठंतु दीउ जित्तु नंदिमुणिदेवि । गयकुंभथलि आरुहीय पढमसिद्ध मरुदेवि ॥ विवरणु पिंडविसुद्धि कीउ धमविहिग्रंथु प्रसिडु । चीयवंदणदीवीय रचीय गणहरु भूअणि प्रसिद्ध । अम्हहं साजणसेठे छम्मासहं कालो। वसतिणि ऊयरि ऊपनउ पदि ठाविजि बालो ॥ तेरदुरोत्तरवरिसे अप्पङ साइं। चड्डावलि दिविहो जगि लीह लिहावी ॥ कछूली जाएवि परमकल सु गच्छभारुधरो। पंचम वरिस वहंति सजणनंदणु दीखीउ । देवाएसु लहेवि गोठीय सत्तमे वरिस लहो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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