SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः मुहडभणी संभृतविजय दुक्कर ति पसंसिय । तसु सीसिहिं पुण थूलभद्दमुणिवरगुण खिंसिय । तिणि कम्मि कोसवेसिहिं नडिऊ चडिउ हत्थ दुजणतणइ । अपकित्ति अलिय अन्ज वि अजस महिमंडलमाहि रुणझणइ ॥२५॥ म करउ मच्छर माण जाण सरिसउ जगि कोइ। पूरउ पुण्य प्रभावि पावि पुण हीणउ होइ। बाहुसुबाहु मुसाहु सुणवि गुण किउ मनि मच्छर । तिणि हीणत्तण पत्त पीढमहपीढिहिं दुहकर। परजम्मि बंभिसुंदरि सुधूय महि महिला महियलि मुणउ । सिरिरिसहभरहबाहुबलिहिं त्रिहुं प्रभाव पुन्नहतणउ ॥ २६ ॥ अणगल नीर विपार सुहम जीवाइअरकण। इण कारणि बहुकठ अप्पफल कहइ वियस्कण । छठिहिं सठिसहस्स वरिस तप तपइ अज्ञानिहिं । पारण पुण इकवीसवारजलधोइयधानिहिं । सो तामलि रिसि एरिस तपी मास दुन्नि अणसणि सरिउ । ऊपान इंद्र ईसाणि तिणि मुकमग्ग न हु अणुसरिउ ॥ २७ ॥ कंबलरयणविनाणि जाणि जग उत्तमचंगिम । नरवरपिकणि जाइ माइ पुत्तह पभणइ इम । आवि इक्क खण पुत्त पत्त सेणिय तुह मंदिर। लेउ क्रियाणउं माइ ठाइ ठावउ जिणि तिणि परि । न क्रयाणां कुइ एउ सामि तुम्ह सालिभद्द य वयण सुणि। भववासविरत्त चरित्त लिइ छडि सुरक सहु कणयमणि ॥ २८ ॥ अयवंतीसुकुमाल नयरि उजेणि पसिद्धउ । नलिणीगुलमविचार सुणवि तरकणि पडिबुडउ । अजसुहत्यिमुणिंदहत्थि वय लेवि मसाणिहिं। कासगि रहिउ सीयालि खद्ध मण लग्गु विमाणिहिं । सुहझाणि ठाणि तिणि सुर हुओ रमणि बत्तिसे व्रत लिउ । तसु नंदणि तिणि थानकि पछइ महाकालदेउल किउ ॥ २९ ॥ रायग्गिहि मेयज भजनववर विवहारिउ । पुव्वमित्त सुरि बोहि दिक दुरिकहिं लेवारिउ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy