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________________ उवएसमालकहाणयछप्पय १५ सुणवि तासु गुणवत्त रत्त धणसिढिकुमारी। । कणयकोडिसंजुत्त पत्त सासई वरनारी। गुरुरयणवयणपडिबोह सुणि सुडसीलसंजमि रहि । जिम तेणि मुक्क तिम मुक्कीइ रमणि रयणकोडिहिं सही ॥२०॥ नंदिसेण दोहग्गनडिउ निडणबंभणसुय । भवविरत्त चारित्त गहवि तव तवइ अचम्भुय । वेयावञ्चपसंस इंदकियकसिहिं पहुत्तउ । बंधिय अंति नियाण सग्गि सत्तमि सो पत्तउ । दसचउरसारनरखयरधूयसहसबहुत्तरिरमणिवर । सोहग्गसार वसुदेव हय हरिकुल वंसपयासकर ॥ २१॥ पत्त दिवसि चारित्त कन्हलहुबंधव रयणिहिं । गयसुकुमाल मसाणि रहिउ कासगि जिणवयणिहिं । बंभणि बंधवि पालि सीसि वइसानर दिवउ । सिरह सरिस दुकम्म दहवि मुणि तकणि सिद्धउ । तस दुट्ठदुरियभारभूरिय उयर फुट नरय ग्गमह । जिम सहिउँ तेणि तिम संसहु लहु लच्छि सुपरक्कमह ॥ २२ ॥ थूलभद्द गुरुवयणि कोसवेसाहरि पत्तउ । चित्तसालि चउमासि रहिउ रसविगइनिरत्तउ। पुव्ववेर संभारि समर समरंगणि जित्तउ । जिणसासणि जयवंत सुहड सुपरिहिं विदित्तउ। खरखग्गधारसिरि संचरिउ सरिउ सीह जिम इक्कमन । जे सीलभाव दुद्धर धरइं ते सुसाहु ते धन्न धन ॥ २३ ॥ तवसी इक उपकोसगेहि गिउ गुरु अवमन्निय । थूलभद्दमुणिसरिसु करिमु तव इम मनि मन्निय । अत्थलाभ सुणि वयण रयणकंबल भणि चल्लइ । सहवि अवत्थ सुवत्थ आणि वेसाकरि मिल्हइ । चंपेवि खालि पडिबोहिउ सुगुरुपासि पत्तउ भणइ । निंदीइ लोकि सो गुरुवयण अप्पमाण इह जो कुणइ ॥ २४ ॥ गुणिअणसरिस गव्व म करि मूरख मच्छरि वसि । न हुनिव्वडइ समत्थ जइ वि गद्दह गयमरकसि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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