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चर्चरिका
अथिरकडेवरकारिणिहि कहि किम खिज्जइ काउ ॥ ५१ ॥ सुमिणंतरि मेलावडउ अहनिसि पहर चियारि ।
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पसरिय निय निय दिसि चलए अरि जिय सुमणु विचारि ॥ ५२ ॥ परकिसोर मत्तकरि दमइ करि करेविणु कट्टु निय जीवु कोवि न वसि करए थिउ गलियारु विघ ॥ ५३ ॥ संजमि नियमिहिं जे गया ते गणि सारा दीह ।
अवर जि पावारंभि गय ताह फुसिजउ लीह ॥ ५४ ॥ हिंडेविणु भवकोडिसइ लडउ माणुसजम्मु ।
तत्थ वि विसयह मोहियउ न करइ जिणवरधम् ॥ ५५ ॥ क्षणभंगुरु देहहतणउं अरि जिय कोइ विसासु । भाव न मुच्चइ जिणु मणह जाव फुरक्कइ सासु ॥ ५६ ॥ मंगलमहासिरिसरिसु सिवफलदायगु रम्मु । दूहामाई अरिक पउमिहिं जिणवरधम्मु ॥ ५७ ॥ इति श्रीधर्ममातृका समाप्ता ।
चर्चरिका
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जिण चडवीस नमेविणु सरसइपय पणमेव । आराहउं गुरु अप्पणउ अविचलु भावु धरेवि ॥ १ ॥ कर जोडिउ सोलणु भणइ जीविउ सफलु करेसु । तुम्हि अवधारह मियउ चच्चरि हउं गाएसु ॥ २ ॥ मणि उंमाह अंमि मुहु मोकल्लि करिउ पसाउ । जिव जाइवि उज्जितगिरि वंदउं तिहुयणनाहु ॥ ३ ॥ नइ विसमी डुंगर घणा पूत दुहेलउ मग्गु । भूयडियह एसि तुहुं बलि होस अंगु ॥ ४ ॥ बालइ जोयणि नं गिया अंमि जि तहिं गिरिनारि । ते जंमंतर दूत्थिया हिंडहिं परघरबारि ॥ ५ ॥ इंअ असारी देहडी अंमि जि विढपइ सारु । तिणि कारण उज्जितगिरि वंदउं नेमिकुंआरु ॥ ६ ॥ करि करवत्ती कूडी सिरि पोटली ठवेवी ।
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