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________________ - पृथ्वीचन्द्रचरित्र ११९ तधवललोचन; जिसिउ चालतउ हुइ प्रासाद, अथवा कैलासपर्वतस्युं लिइ वाद । इसिउ अत्यंत शुभ, दीठउ षभ २। तउ राणीयइ दीठउ सीहु । किसिउ ते सीह । रूप्यपिंडपांडुर, अद्भुतप्रभाडंबर, रक्तोत्पलसुकुमालताल, तालूइ लागी आरक्त जिह्वा जिसि हुइ अशोकप्रवाल । विस्तीर्णकेशरसटाशोभितस्कंध, वज्रसारशरीरबंध; प्रवरपीवरप्रकोष्ठ, कमलदल रक्तोष्ट, तीक्ष्णदाढाविडंबितवन, पराक्रमतणउं सदन; पुच्छच्छटां पृथ्वी आस्फालतउ, पीतलोचनि भूमिकांति निहालतउ, मूषागतसुवर्णसमान फिरतां पिंजरनेत्र, शौर्यवृत्तितणउं क्षेत्र; अकल अगंजित, सबल अपराजित; अबीह, एवंविध दीठउ सीह ३ । तु दीठी देवी लक्ष्मी । ते किसी । हिमवंतपर्वततणइ शिवरि, महापखरि; पद्मद्रहमाहि योजनप्रमाणविमलकमलि संनिविष्ट, चंद्रसमानवदन, कमलसमानलोचन, निर्जितसूर्यमंडल, देदीप्यमानकुंडल; उदारप्रलंबितहार, अद्भुतशृंगार; दिग्गजेंद्रे अमृतकलसि करी अभिषिच्यमान, पगतलि चांपी रही नवनिधान; एवंविध सकलकल्याणपात्र, मनोज्ञगात्र, देवी लक्ष्मी दीठी ४ तद्नंतर अशोक चंपक नाग पुन्नाग प्रियंग पाडल सेवत्री जाइ जूही वेउल बउल श्रीदमणा मरुआ मंदार मुचकंद केतकीप्रमुखवनस्पतीतणे कुसुमि निष्पन्न भ्रमरभरभुज्यमानपरिमल एवं विध दीठउ मालायुग्म ५। तउ दीठउ चंद्रमा। ते किसीउ चंद्रमा।रात्रितणइ समयि उदयि करी, सकल ताप हरी; रोहिणीरमण यामिनीजीवितेश्वर अमृतमयमूर्ति उज्ज्वलधवल, प्रीणितचकोरकुल, एवंविध चंद्रमंडल ६। तउ दीठउ श्रीसूर्य । किसिउ ते सूर्य । प्रभाततणइ समइ जेह श्रीसूर्यतणइ उदइ प्रासादतणां द्वार ऊघडई, देवहुई पूजा चडइ; पंथ सवे वहई, मुनीश्वर धर्मकथा कहई, लोक वादविशेष लहई, मेघ मल्हारगाइइ । मांहि अनेक शतपत्र सहस्रपत्र लक्षपत्र कोटिपत्र सूर्यवंशी कोमल विहसई, चक्रवाक उल्हसइं; एवंविध प्रखरकिरणनिकर, दीठउ सहस्रकर ७ । तउ दीठउ ध्वज । किसिउ ते ध्वज । कृतालाद, कोई एक गरूउ प्रासाद, प्रखरि, तेहतणइ शिषरि; अखंड, सुवर्णमयदंड; तेजि करी अंकुश, कनकमय कलश; भली, रत्नमय पाटली; तिहां जिसी स्वर्गतउ अदाली, इसी फाली; निरुपम स्वरूप, तिहां सीहतणउं रूप । इसिउ घंटागणि गहगहतउ वाइ लहलहतु निर्मल नीरज, राणीइं दीठउ ध्वज ८।तउ दीठउ पूर्णकलस। किसिउ ते पूर्णकलस । सुवर्णघटित रत्नमय पडघीयां स्थापित, कंठि पुष्पमाला व्यापित; माहि अमृतपूरित घटजुगली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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