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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः
विराजमान, आम्रफलप्रधान; मांगलिक लक्ष्मीप्रदानतणइ विषइ अनलस, दीठउ पूर्णकलस ९। तउ दीठउं सरोवर, वृक्षतणउ परिकर; पालिउन विस्तर, देहरीनउ समहर, पाणीनउ आकर । चउकी चउषंडी झलहलई, परइ वाइ लहरि ऊच्छलई, ऊपर जाण भरीयई, षड कूइ तरीयइ। अमृतोपम नीर, दीठइं ठरइ शरीर; सारस कुरल कपिंजल कलहंस कलगलइं, तापतणा व्याप टलइं; राजहंस रमई, भ्रमर भमइं; चकोर चक्रवाक कूजई, जलकेलिनां कोड पूजइं; मोर वासई, सर्प नासई; आडि पंखीया तरइं, ब्राह्मण स्नान करइं; आस्तिक लोक नित्य सारई, कश्मल निवारइ; संध्याविधि साधई, अघमर्षणमंत्र आराधइं; धोतीयां धोयई, कमंडल ढोयइं । सिसिरगुणतणउ सहवास, जलदेवतातणउ निवास । देहरी दंडकलस आमलसारा झलकइ, जलहारिणीकुलवधूतणां नूपुर षलकइं; तडि कीर्तिस्तंभ दीसइ, हीयउं विहसइ ।बग थलइ जाइइ, मेघ मल्हार गाइइ । माहि अनेक शतपत्र सहस्रपत्र लक्षपत्र कोटिपत्र सूर्यवंशी सोमवंशी कमलवन विकाश पामई, देवता जिहां क्रीडा कामइं । एवंविध उदार, वृत्ताकार; अत्यंतसार; महामनोहर; दीठउं पद्मवनखंडमंडित सरोवर १० । तउ दीठउ समुद्र । किसिउ ते समुद्र ! अनंतजलु, अनंतकल्लोलकोटीसंकुल । माहि मत्स्य महामत्स्य नक्र चक्र पाठीन पीठ तिमिगिलितणां कुल पडइ, एकि ऊपडइ । लहरि वाजइं, पाणी गाजइं; दक्षिणावर्त्तशंखतणां यूथ फिरई, माहि अनेक प्रवहण सांचरइं । एकि पूरीई, एकि नांगरीयई, वाहण वाहणरहई एकि मिलितां आफलई । मोतीप्रवाला आगरथकां लीजइ, किहां एकइ मेघिइं पाणी पीजई। इसिउ आश्चर्यतणउ निलय, पृथ्वीपीठहुइ वलय; गुहिर गंभीर, अनंतनीर; समुद्र, राणीयइ दीठउ समुद्र ११ । तउ दीठउं विमान । किसिउं विमान । सुवर्णमयभित्ति, रत्नमयविच्छित्ति; प्रशस्यकलशि करी शोभमान, गगनलक्ष्मीहुई कुंडलसमान; जेहमाहि अनेक देव देवी रमलि करइं, एकि श्रति धरइं; एकि गीत गायई, एकि वादिन वाई; हीयइं हर्ष न माई । अनेककुसुमतणा प्रकर, चंद्रूआतणा निकर; मोतीतणी सरि लहकई, कपूरकस्तुरीतणा परिमल बहकई; ध्वजा लहलहई, मन गहगहई। एवंविध विबुधवधूजनक्रीडास्थान, तेजःपटलि निर्जितभानुप्रधान, दीठउं विमान १२ । तउ दीठउ रत्नरा. शि। किसिउ ते रत्नराशि । अनेक वज्र वैडूर्य चंद्रकांत जलकांत पुष्पराग पद्मराग मरकत कर्केतन चंद्रप्रभ साकरप्रभ प्रभानाथ अशोक वीतशोक अप
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