SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समरारासु आगेवाणिहि संचरए संघपति साहुदेसलु । बुद्धिवंतु बहुपुंनिवंतु परिकमिहिं सुनिश्चलु ॥३॥ पाछेवाणिहि सोमसीहु साहुसहजापूतो। सांगणुसाहु लूणिगह पूतु सोमजिनिजुत्तो। जोड करी असवारमाहि आपणि समरागरु । चडीय हीड चहुगमे जोइ जो संघअसुहकर ॥४॥ सेरीसे पूजियउ पासु कलिकालिहिं सकलो । सिरषेजि थाइउ धवलकए संघु आविउ सयलो । धंधूकउ अतिक्रमिउ ताम लोलियाणइ पहुतो। नेमिभुवणि उछवु करिउ पिपलालीय पत्तो ॥५॥ सप्तमी भाषा-संघिहिं चउरा दीन्हा तहिं नयरपरिसरे । अलजउ अंगि न माए दीठउ विमलगिरे । पूजिउ परवतराउ पणमिउ बहुभत्तिहिं । देसलु देयए दाणे मागणजणपंतिहिं ॥१॥ अजियजिणिंदजुहारो मनरंगि करेवि । पणमइ सेत्रुजसिहरो सामिउ सुमरेवि ॥ २॥ पालीताणइ नयरे संघ भयलि प्रवेसु । ललतसरोवरतीरे किउ संघनिवेसु । कजसहाय लहुभाय लहु आवियउ मिलेवि ॥ ३ ॥ सहजउ साहणु तीहि त्रिन्हइ गंगप्रवाह । पासु अनइ जिण वीरो वंदिउ सरतीरिहिं । पंषि करइ जलकेलि सरु भरिउ बहुनीरिहिं ॥४॥ सेत्रुजसिहरि चडेवि संघु सामि ऊमाहिउ । सुललितजिणगुणगीते जणदेहु रोमंचिउ । सीयलो वायए वाओ भवदाहु ओल्हावए । माडीय नमिय मरुदेवि संतिभुवणि संघु जाए ॥५॥ जिणबिंबइ पूजेवी कवडिजकु जुहारए। अणुपमसरतडि होई पहुता सीहदुवारे । तोरणतलि वरसंते घणदाणि संघपत्ते । भेटिउ आदिजगनाहो मंडिउ पत्रीठमहूछवो ॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy