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________________ ३४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रह. अष्टमी भाषा-चलउ चलउ सहियडे सेत्रुजि चडिय ए। आदिजिणपनीठ अम्हि जोइसउंए। माहसुदि चउदसि दूरदेसंतर संघ मिलिया तहिं अति अबाह॥१॥ माणिके मोतिए चउकु सुर पूरह रतनमइ वेहि सोवन जवारा । अशोकवृक्ष अनु आम्र पल्लवदलिहि रितुपते रचियले तोरणमाला ॥२॥ देवकन्या मिलिय धवलमंगल दियइ किंनर गायहि जगतगुरो। लगनमहूरतु सुरगुरो साधए पत्रीठ करइ सिधसूरिगुरो ॥३॥ भुवनपतिव्यंतरजोतिसुर जयउ जयउ करइ समरि रोपिउ द्रिढु धरमकंदो। दुंदुहि वाजिय देवलोकि तिहुअणु सीचिउ अमियरसे ॥४॥ देउ महाधज देसलो संघपते ईकोतरु कुल ऊधरए । सिहरि चडिउ रंगि रूपि सोवनि धनि वीरि रतनि वृष्टि विरचियले ॥५॥ रूपमय चमर दुइ छत्त मेघाडंबर चामरजुयल अनु दिन्नदुन्नि । आदिजिणु पूजिउ सहलकंतिहिं कुसुम जिम कनकमयआभरण ॥६॥ आरतिउ धरियले भावलभत्तारिहिं पुव्वपुरिस सग्गि रंजियले । दानमंडपि थिउ समर सिरिहि वरो सोवनसिणगार दियइ याचकजन ॥७॥ भत्ति पाणी य वरमुनि प्रतिलाभिय अच्चारिउ वाहइ दुहियदीण । वाविउ सुधम वितु सिद्धखेत्रि इंद्रउच्छवु करि ऊतरए ॥ ८॥ भोलीयनंदणु भलइ महोत्सवि आविउ समरु आवासि गनि । तेरइकहत्तरइ तीरथउद्धारु यउ नंदउ जाव रविससि गयणि ॥९॥ नवमी भाषा-संघवाछल करी चीरि भले माल्हंतडे पूजिय दरिसण पाय । सुणि सुंदरे पूजिय दरिसण पाय । सोरठदेस संधु संचरिउ मा० चउंडे रयणि विहाइ ॥ १॥ आदिभक्तु अमरेलीयह माल्हं० आविउ देसलजाउ । अलवेसरु अल जवि मिलए माल्हं० मंडलिकु सोरठराउ ॥२॥ ठामि ठामि उच्छव हुअइ माल्हं० गढि जूनइ संपत्तु । महिपालदेउ राउलु आवए माल्हं० सामुहउ संघअणुरत्तु ॥ ३ ॥ महिपु समरु बिउ मिलिय सोहई माल्हं० इंदु किरि अनइ गोविंदु । तेजि अगंजिउ तेजलपुरे मा० पूरिउ संघआणंदु । सुणि ॥४॥ वउणथलीचेत्रप्रवाडि करे माल्हं० तलहटी य गढमाहि । ऊजिलऊपरि चालिया ए माल्हं० चउम्विहसंघहमाहि । सुणिः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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