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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः कुलदेवत सचिया वि भुजि अवतरह । सहव सेस भरइं तिलकु मंगलु करई ॥३॥ पोसवदि सातमि दिवसि सुमुहुत्तिहिं । आदिजिणु देवालए ठविउ सुहचित्तिहिं । धम्मधोरी य धुरि धवल दुइ जुत्तया । कुंकुमपिंजरि कामधेनुपुत्तया ॥४॥ इंदु जिम जयरथि चडिउ संचारए। सूहवसिरि सालिथालु निहालए। जा किउ यवरो वसहु रासिउ हूउ । कहइ महासिधि सकुनु इहु लडउ । आगलि मुनिवरसंघु सावयजणा। तिलु न पिरइ तिम मिलिय लोय घणा ॥५॥ मादलवंसविणाझुणि वज्जए। गुहिरभेरीयरवि अंबरो गज्जए। नवयपाटणि नवउ रंगु अवतारिउ । सुषिहि देवालउ संखारी संचारिउ ॥ ६॥ घरि बयसवि करि के वि समाहिया। समरगुणि रंजिउ विरलउ रहियउ । जयतु कान्हु दुइ संघपति चालिया।
हरिपालो लंदको महाधर दृढ थिया ॥७॥ षष्ठी भाषा-वाजिय संख असंख नादि काहल दुडुदुडिया।
घोडे चडइ सल्लारसार राउत सींगडिया । तउ देवालउ जोत्रि वेगि घाघरिरवु झमकइ । सम विसम नवि गणइ कोइ नवि वारिउ थका ॥१॥ सिजवाला धर धडहडइ वाहिणि बहुवेगि । धरणि धडकइ रजु ऊडए नवि सूझइ मागो। हय हींसइ आरसइ करह वेगि वहइ बइल्ल । साद किया थाहरइ अवरु नवि देई बुल्ल॥२॥ निसि दीवी झलहलहि जेम ऊगिउ तारायणु । पावलपारु न पामियए वेगि वहइ सुखासण ।
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