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समरारासु पातउ नामिहि मंत्रिवरो तमुतणइ सुरज्जे। चंद्रकन्हइ चकोरु जिसउ सारइ बहुकज्जे ॥ ३ ॥ राणउ रहियउ आपुणपई पाणिहि उपकंठे । टंकिय वाहइ सूत्रहार भांजइ घणगंठे । फलही आणिय समरवीरि ए अतिबहुजयणा। समुद्र विरोलिउ वासुगिहिं जिम लाधा रयणा ॥ ४॥ कूआरसि उछवु हूअउ त्रिसींगमइनइरे । फलही देषिउ धामियह रंगु माइ न सइरे। अभयदानि आगलउ करुणारसचित्तो। गोत्ति मेल्हावइ षइरालुअह आपइ बहुवित्तो ॥५॥ भांडू आव्या भाउघणउ भवियायण पूजइ । जिम जिम फलही पूजिजए तिम तिम कलि धूजइ । खेला नाचइ नवलपरे घाघरिरवु झमकइ । अचरिउ देषिउ धामियह कह चित्तु न चमकइ ॥६॥ पालीताणइ नयरि संघु फलही य वधावइ । बालचंद्र मुनि वेगि पवरु कमठाउ करावइ । किं कप्पूरिहि घडीय देह षीरसायरसारिहि ॥ ७ ॥ सामियमूरति प्रकट थिय कृप करिउ संसारे। मागी दीन्ह वधावणी य मनि हरषु न माए ।
देसलऊवह चरित्रि सहू रलियातु थाए ॥८॥ पञ्चमी भाषा-संधु बहुभत्तिहिं पाटि बयसारिउ ।
लगनु गणिउ गणधरिहिं विचारिउ । पोसहसाल खमासण देयए । सूरिसेयंबरमुनि सवि संमहे ए ॥१॥ घरि बयसवि करी के वि मन्नाविया। के वि धम्मिय हरसि धम्मिय धाइया । बहुदिसि पाठविय कुंकुमपत्रिया। संघु मिलइ बहुभली य सज्जाइया ॥२॥ सुहगुरुसिधसुरिवासि अहिसिंचिउ । संघपति कल्पतरु अमिय जिम सिंचिउ।
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