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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः समरऊ ए साहसधीरु वाहविलग्गउ बहू अ जण । बोलई ए असमवीरू दूसमु जीपइ राउतवट ए ॥१॥ अभिग्रहू ए लियइ अविलंबु जीवियजुव्वणबाहबलि । उधरऊ ए आदिजिणबिंबु नेमु न मेल्हउ आपणउ ए। भेटिऊ ए तउ षानषानु सिरु धूणइ गुणि रंजियउ ए ॥२॥ वीनती ए लागु लउ वानु पूछए पहुता केण कज्जे । सामिय ए निसुणि अडदासि आसालंबणु अम्हतणउ ए। भइली ए दुनिय निरास ह ज भागी य हींदूअतणी ए। सामिय ए सोमनयणेहिं देषिउ समरा देइ मानु ॥ ३ ॥ आपिऊ ए सव्ववयणेहिं फुरमाणु तीरथमाडिवा ए। अहिदर ए मलिकआएसि दीन्ह ले श्रीमुखि आपण ए। षतमत ए पानपएसि किउ रलियाइतु घरि संपत्तो । पणमई ए जिणहरि राउ समणसंघो तहि वीनविउ ए॥४॥ संघिहि ए कियउ पसाउ बुद्धि विमासिय बहूयपरे । सासण ए वर सिणगारु वस्तपालो तेजपालो मंत्रे । दरिसण ए छह दातारु जिणधर्मनयण बे निम्मला ए। आइसी ए रायसुरताण तिणि आणीय फलही य पवर ॥५॥ दूसम ए तणी य पुणु आण अवसरो कोइ नही तसुतणउ ए। इह जुग ए नही य वीसासु मनुमात्रे इय किम छरए।
तउ तुहु ए पुन्नप्रकासु करि ऊधरि जिणवरधरम् ॥ ६॥ चतुर्थभाषा-संघपतिदेसलु हरषियउ अति धरमि सचेतो।
पणमइ सिधसुरिपयकमलो समरागरसहितो। वीनती अम्हतणी प्रभो अवधारउ एक । तुम्ह पसाइ सफल किया अम्हि मनोरहनेक ॥ १ ॥ सेत्तुजतीरथ ऊधरिवा ऊपन्नउ भावो। एकु तपोधनु आपणउ तुम्हि दियउ सहाउ । मदनु पंडितु आइसु लहवि आरासणि पहुचइ । सुगुरवयणु मनमाहि धरिउ गाढउ अति रूचइ ॥२॥ राणेरा तहि राजु करइ महिपालदेउ राणउ । जीवदया जगि जाणिजए जो वीरु सपराणउ ।
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