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________________ समरारासु द्वितीयभाषा-रतनकुषि कुलि निम्मली य भोलीपुत्तु जाया। सहजउ साहणु समरसीहु बहुपुन्निहि आया ॥१॥ लहूअलगइ सुविचारचतुर सुविवेक सुजाण । रत्नपरीक्षा रंजवइ राय अनु राण ॥२॥ तउ देसल नियकुलपईव ए पुत्र सधन्न । रूपवंत अनु सीलवंत परिणाविय कन्न ॥ ३॥ गोसलसुति आवासु कियउ अणहिलपुरनयरे । पुन्न लहइ जिम रयणमाहि नर समुद्रह लहरे ॥ ४ ॥ चउरासी जिणि चउहटा वरवसहि विहार । मढ मंदिर उत्तंग चंग अनु पोलि पगार ॥५॥ तहिं अछइ भूपतिहिं भुवण सतखणिहि पसत्यो । विश्वकर्मा विज्ञानि करिउ धोइउ नियहत्थो ॥६॥ अमियसरोवरु सहसलिंगु इकु धरणिहिं कुंडलु । कित्तिषंभु किरि अवररेसि मागइ आखंडलु ॥७॥ अज्ज वि दीसइ जत्थ धम्मु कलिकालि अगंजिउ । आचारिहिं इह नयरतणइ सचराचरु रंजिउ ॥ ८॥ पातसाहि सुरताणभीवु तहिं राजु करेई । अलपखानु हींदूअह लोय घणु मानु जु देई ॥९॥ साहु रायदेसलह पूतु तमु सेवइ पाय । कला करी रंजविउ खानु बहु देइ पसाय ॥ १०॥ मीरि मलिकि मानियइ समरु समरथु पभणीजइ । परउवयारियमाहि लीह जसु पहिली य दीजइ ॥ ११ ॥ जेठसहोदरि सहजपालि निज प्रगटिउ सहजू । दक्षणमंडलि देवगिरिहि किउ धम्मह वणिजू ॥ १२ ॥ चउवीसजिणालय जिणु ठविउ सिरिपासजिणिंदो । धम्मधुरंधरु रोपियउ धर धरमह कंदो ॥ १३ ॥ साहणु रहियउ षंभनयरि सायरगंभीरे । पुव्वपुरिसकीरितितरंडु पूरइ परतीरे ॥ १४ ॥ तृतीयभाषा-निसुणऊ ए समइप्रभावि तीरथरायह गंजणउ ए। भवियह ए करुणारावि नीठुरमनु मोहि पडिउ ए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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