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प्राचीनगूर्जरकाव्य सङ्ग्रहः
संजमसिरभासुरह दुसहवयदाढकरालह | नाणनयणदारुणह नियमनि सनहर समिडह | कम्मको रिह विमलपुच्छप सिद्धह । उपसमणउपरधरदुव्विसह गुणगुंजारवजीहह | जिणदत्तसूरि अणुसरह पय पापकरडिघडसीहह ॥ ६ ॥ जरजलबहलरउद्द लोहलहरिहिं गजंतर । मोहमच्छउच्छलिउ कोवकल्लोल वत । मयमयरिहि परिवरिउ पंचबहुवेल दुसंचरु | गंधगरुयगंभीरु असुहआवत्तभयंकरु ।
संसारसमुह जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिवि सुदरियइ । जिणदत्तसूरिउवएस सुणित परतरंडइ सुतरियइ ॥ ७ ॥ सावय किवि कोयलिय केवि खरहरिय पसिडिय । ठाइ ठाइ लक्खियहि मूढ नियवित्तिविरुद्धिय । दरहि न किंपि परत बेवि सुपरूप्पर जुज्झहि । सुगुरु कुगुरु मणि मुणिवि न किवि पहंत बुज्झहि । जिणदत्तनूरि जिन नमहि पयपउम सच्चु नियमणि वहहि । संसारउयहि दुत्तरि पडिय जि न हु तरंडइ चडि तरहि ॥ ८ ॥ तवसंजमसयनियमि धम्मकम्मिण वावरियउ । लोहकोहमयमोह तह व सप्पिहि परिहरियड । विसमछेदलक्खणिण सत्थअत्थत्थविसालह । जिणवल्लहगुरुभत्तिवंतु पयड कलिकालह |
अन्निहिवि गुणिहि संपन्नतणु दीणदुहियउंडरणु धर । जिणदत्तसूरि पर पल्ह भणु तत्तवंत सलहियइ घर ॥ ९ ॥ वक्खाणियइ परमतत्तु जिण पाउ पणासह | आराहियइ त वीरनाह कइपल्हु पयासह | धम्मु त दयसंजुत्तु जेण वरगइ पाविज्जइ ।
चाउ त अणखंडियउ जु बंदिण सलहिजइ ।
जइ ठाइ त उत्तिममुणिवरह पवरवसहिहो चउर नर ।
तिम सुगुरुसिरोमणि सूरिवर खरतरसिरिजिणदत्त वर ॥ १० ॥ इति श्रीपट्टावलीषट्पदानि । संवत् ११७० वर्षे अश्वयुगाद्यपक्षे ११ तिथौ श्रीमद्धारानगय श्रीखरतरगच्छे विधिमार्गप्रका शिवसतिवासिश्रीजिणदत्तसूरीणां शिष्येण जिनरक्षितसाधुना लिखितानि ।
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