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________________ अतिचार ईणि कारणि सुभकार्यआदि पहिलउं सुमरेवउं, जिव ति कार्य एहतणइ प्रभावइ वृद्धिमंता हुयइ । यउ नमस्कार अतीतअनागतवर्त्तमानचउवीसीआदिजिनोक्तसारु, सुतुम्हे विसेषहइ हिवडातणइ प्रस्तावि अर्थयुक्तु ध्येयु ध्यातव्यु गुणेवउ पढेवउ । जु किसउ । जिणसासणस्स सारो चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो। जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ ॥ अनइ एहु नमस्कारु स्मरता इहलोकतणा भय नासइ । यदुक्तं-अडविगिरिरन्नमज्झे भयं पणासेइ चिंतिओ संतो। रकइ भवियसयाई माया जह पुत्तभंडाइ ॥ वाहिजलजलणतकरहरिकरिसंगामविसहरभएहिं । नासंति तकणेणं जिणनवकारप्पभावेणं ॥ हियइगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निचं । कम्मट्टगंठिदोघघट्टयं ताण परिनटुं॥ नमस्कारस्य स्वरूपं भण्यते । ईणि नवकारि नव पद पांच अधिकार सत्तसहि अक्षर, तीहमाहि छ भारी इकसठि लघु । इसउं नमस्कारतणउंमाहातम्यु। एसो मंगलनिलओ भयविलओ सयलसंतिसुहजणओ। नवकारपरममंतो संतियमित्तो सुहं देउ॥ अप्पुव्वो कप्पतरू एसो चिंतामणी य अप्पुवो। जो झाइ सयलकालं सो पावइ सिवसुहं विउलं ॥ नवकारव्याख्यानं समाप्तम् ।। अतिचार. संवत् १३६९ मां लखेला ताडपत्रमांथी. तउ तुम्हि ज्ञानाचार दरिसणाचार चारित्राचार तपाचार वीर्याचार पंचविधआचारविषइया अतीचार आलोउ । ज्ञानाचारि कालवेला पढिउ गुणिउ विनयहीनु बहुमानहीनु उपधानहीनु गुरुनिन्हवु अनेरीकन्हइ पढिउं अनेरउ कहिउ । व्यंजनकूट अक्षरकूट कानइ मात्र आगलउ ओछउ देववंदणइ पडिकमणइ सज्झाओ करतां पढतां गुणतां हुओ हुइ, अर्थकूट तदुभयकूट, ज्ञानोपकरणि पाटी पोथी ठवणी कमली सांपडा सांपडी पतिआसातना पगु लागउ थुकु लागउ पढतां गुणतां प्रद्वेषु मच्छरू अंतराइ हुउ कीधउं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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