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नवकारव्याख्यानम् देवलोकि पंचास सहस, सातमइ शुक्रदेवलोकि च्यालीस सहस, आठमइ सहस्रारि देवलोकि छ सहस, नवमइ आणति देवलोकि बिसइ, दसमइ प्राणति देवलोकि बिसइ, इग्यारमइ आरणि देवलोकि बारमइ अच्युतदेवलोकि बिहू दउढु दउढु सउ, अनइ हेठिले बिहू अवेयके इग्यारोत्तरु सउ, माहिले बिहू ग्रैवेयके सत्तोत्तर सउ, ऊपइले बिहू ग्रैवेयकि एक सउ, पंच पंचोत्तरविमाने, एवंकारइ स्वर्गलोकि चउरासी लाख सत्ताणवइ सहस त्रेवींस आगला जिनभुवन वांदङ । अनंतरु भुवनपतिमज्झे असुरकुमारमज्झे चउसटि लाख, नागकुमारमझे चउरासी लाख, सुवन्नकुमारमज्झे बहत्तरि लाख, वायकुमारमज्झे छन्नवइ लाख, दीवकुमार दिसाकुमार अहिठ्ठकुमार विज्जुकुमार थुणियकुमार अग्गिकुमार छहं मध्यभागे छहत्तरि छहत्तरि लाख, एवंकारइ पाताललोकि सातकोडि बहत्तरिलाख जिनमंदिर स्तवउं । अथ मनुष्यलोकि नंदीसर वरि दीपि बावन्न, च्यारि कुंडलवल्गि, च्यारि रुचकि वल्गि, च्यारि मानुषोत्तरि पर्वति, च्यारि इक्षार पर्वति, पंच्यासी पांचे मेरे, वीस गजदंत पर्वति, दस कुरपर्वति, त्रीस सेलसिहरे, असीव क्षारसेलसिहरे, सरिसउ वैताट्यपर्वति, एवं च्यारि सइ त्रिसहि जिणालइपडिमं, एवं आठ कोडि छप्पन्न लाख सत्ताणवइ सहस च्यारि सइ छियासिया तियलुक्के शास्वतानि महामंदिर त्रिकाल तीह नमस्कार करचें ॥
सर्वतीर्थनमस्कारस्तवनम् । नवकारव्याख्यानम्
नमो अरिहंताणं ॥ १॥ माहरउ नमस्कार अरिहंत हउ । किसा जि अरिहंत; रागद्वेषरूपिआ अरि वयरी जेहि हणिया, अथवा चतुषष्टि इंद्रसंबंधिनी पूजा महिमा अरिहइ; जि उत्पन्नदिव्यविमलकेवलज्ञान, चउन्नीस अतिशयि समन्वित, अष्टमहाप्रातिहार्यशोभायमान महाविदेहि खेत्रि विहरमान तीह अरिहंत भगवंत माहरउ नमस्कारु हउ ॥१॥
नमो सिडाणं ॥२॥ महारउ नमस्कारु सिद्ध हउ । किसा जि सिद्ध; दुष्टाष्टकर्मक्षउ करिउ, जि मोक्षि ग्या । आठ कर्म किसा भणियइ । ज्ञानावरणीउ १ दरिसणावरणीउ २ वेदनीउ ३ मोहनीउ ४ आयु ५ नामु ६ गोत्तु ७ अंतराउ ८ ईह आठकर्मक्षउ करिउ जि सिद्धि ग्या । किसी ज सिडि; लोकतणइ अग्रविभागि पंचत्तालीस लक्षयोजनप्रमाणि जिसउं उत्ताणु छत्तु
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