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________________ उवएसमालकहाणयछप्पय दीवअवधि कासग्ग करिय निच्चल हुइ पालइ । दासी पुण दीवेल घल्लि चउपहर उजालइ। पूरिय प्रतिज्ञ प्रहउग्गमणि परम प्रीति पामिउ पवर । सुकुमालअंग सुहझाणमण सग्गलोइ संपन्न सुर ॥ ४० ॥ सावय सागरचंद रहिउ कासग्गि महावनि । कमलामेलाहरणवैर नभसेन धरइ मनि । घल्लइ सिरि अंगार तह वि मो झाणनिरत्तउ । पोसहवय दृढ पालि टालि दुह सग्गि पहुत्तउ । जइ हुति दुसह उवसरग सहइ स गिहत्थ सुकुमालतणु । ता अइदुडरचारित्तधर साहु केम न सहंति पुण ॥ ४१ ॥ चंपापुर अढारकोडिधणवइ कोड्डुबिय । पोसह करि कासग्गि रहिउ निसि भुज आलंबिय । इंद्रप्रसंस असद्दहंत अमरेहिं परिस्किय । मन्तगइंदभुयंगघोररकसभय दकिय । नहु चलिउ मेरुचूलाअचल कामदेव गिहवइ सुथिर । पहुवीर पयासिउ प्रहसमइ सीसवग्गअग्गलि सुविर ॥ ४२ ॥ रायग्गिहि इक रंक अछइ अइदुकिउ अग्गइ। उज्जाणी जण जत्त पत्त तहिं भिक सु मग्गइ । अलहंतउ अइरोसि दोसि नियकम्मिहिं नडिउ । चूरिसु लोग समग्ग एम चिंतिय गिरि चडिउ । ढोलेइ टोल परबततणा गडघडाट सुणि नट्ठ सहु । पाषाणि तेणि सो चंपिऊ नरयदुक पामिऊ दुसहु ॥ ४३ ॥ वडमाण वय लिड जाव बीजऊ वरसालऊ। मुंड तुंड मंडेवि पुंठि विलगऊ गोसालऊ। जिणवयणिहिं विधि जाणी तेजलेश्या तपि साधी । तह अटुंगनिमित्त कह वि विजा तिण लाधी । उम्मग्गचारि अनरथभरिउ गुरुद्रोही गरविहिं नडिउ । मंखलिसुय मोघ किलेस करि दुहसायरि दुत्तरि पडिउ ॥ ४४ ॥ दृढपहारि वड चोर जाइ कुसथलिसिउं चोरिहिं । खीरकजि धावंत विप्प मारिउ तिणि घोरिहिं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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