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________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः बंभणभन्ज सगब्भ हणिय बालक फुरकंतउ । पिकवि भववेरग्गि लेइ संजम दिप्पंतउ । संभरणअवधि छंडिय असण तिणि ज गामि छम्मास रहि । अक्कोस बंधवह दुसहसह सिद्धि पत्त दुक्कम दहि ॥ ४५ ॥ वीरसेणसेवक्क सहसमल्ल त्ति पसिद्धउ । कालसेनरिउराय जेण बिहुबांहिहिं बद्धउ । तिणि गुणि संखनरिदि किड सामंत विदित्तउ । वेरग्गिहिं व्रत लेवि तीण अरिदेसि पहुत्तउ । पचारिय पूरव बाहुबल कालसेनि कुट्टाविउ । सव्वठ्ठसिद्धि सुरवर सरिउ कोह कह वि तस नाविउ ॥ ४६॥ सावत्थीनिवकणयकेतुसुय खंदग नामिहिं । दिक लेवि जिणकप्प करइ विहरइ पुरगामिहिं । व्रत लिडइ तस ताय नेहि सिरि छत्त धरावइ । तह वि अबडउ बंधुपासि कंतीपुरि आवइ । तस बहिन सुनंदा रायपरि मग्गि जंतु तिणि दिठ्ठ मुणि । नरवरि अलीकशंका धरिय हरिय प्राण तस तिणि रयणि ॥ ४७ ॥ दीरघसिउं रइरत्तचित्त चुलुणी मयणातुरि । बंभदत्तनियपुत्तदहण दकइ लकाहरि । वरधन मंत्रि सुरंगसंगि रकिउ परपंचिहिं । फिरिय फिरिय महिमज्झि रज पुण लहइ सुसंचिहिं । इह कस्स कोइ न हु वल्लहउ भवसरूप नडपिरकणउं । मुहियां जि मूढ मोहिय भणइ हणइ कज पर तहतणउ ॥ ४८ ॥ तेयलिपुरि निव कणयकेतु पउमावइ राणी। मंत्री तेयलिपुत्त भज तस पुटिल नाणी। जाय मत्त सवि पुत्त राय निय लोभि मरावइ । राणी मंत्रि कहेवि एक सुय छन्न रहावइ । नरनाह पत्त पंचत्त सु जि कुंयर राय महतइ कियउ । महतउ पुण पुटिलसुरवयणि पडिबुद्धउ केवलि थियउ ॥ ४९ ॥ रजलोभ मनि धरवि भरह पहुत्तउ समरंगणि । बाहुबलिहिं तहिं दिठिमुठ्ठिझुज्झिहिं जित्तउ खणि । Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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