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________________ उवएसमलकहाणयछप्पय रोसि चडिउं रणि चक्क भरह भाइसिरि मिल्हइ । धिग विसयारसि लुड मुड सासयसुह ठिल्लइ । इम चित्ति चिंति संजम सबल वाहुब्बलि कासगि रहिउ । भरहेसर पत्त अवज्झपुरि भायनेह कित्तिम कहिउ ॥५०॥ भजा विसयविकारिभारि पइमारणि चल्लइ । सूरियकंत कलत्त भत्तभीतरि विस घल्लइ । रायपएसि सुधम्म रम्म पोसहवय पारिय। करइ पारणउं जाव ताव तरकणि विसि घारिय । सुहझाणि ठाणि निअ आणि मण सग्गलोइ संपन्न सुर । दुक्कमचारि सा नारि पुण भमइ भूरि भव भीडभर ॥ ५१ ॥ वीरवयणि जाणेवि नरय सेणिय चिंतइ मनि । कोणिय रज ठवेसु लेसु संजम जाई वनि । हल्लविहल्लहं हार गुरुयगयवरसिउ दिडउ । कूड करी कोणिकि रायसेणिय तव बडउ । नियताय कठ्ठपंजरि धरी खाण पाण बे राहवइ । सयपंच घाय दिणि दिणि दियइ पुत्तनेह एरिस हवइ ॥५२॥ वणियपुत्त चाणिक कवड बहुबुद्धि वियाणइ । चंदगुत्तसाहिजकजि पव्वयनिव आणइ । तससरिसी अतिप्रीति करीय अरिकंटय टालिय। नंदनरिंदह रजनयरि पाडलि उद्दालिय । विसकन्न जाणि परिणाविउ सो वि मित्त जमपुरि लयउ । नियकज करवि विडिउ पछइ मित्तनेह एरिस भयउ ॥ ५३॥ परसुराम जमदग्गिपुत्त रेणुयअंगुब्भम । कत्तविरिय नरनाह हणइ मासीसुय दुद्दम । अप्पण पइ तस रज लेवि हत्थिणपुरि रहियउ । खत्तियवंस असेस फरसुझालिहिं तिणि दहियउ । निवघरणि नट्ठ पच्छन्न ठिय तस सुभूम सुय चक्कवइ । निद्दलइ वंस बंभणतणउ निययनेह एरिस हवइ ॥ ५४॥ अजमहागिरिसूरि भूरिभवपावनिवारण । गिइ जिणकप्पि करंति तस्स तुलणा अइदारुण । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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