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________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः कुलघरनियसुहसयणसंग निस्सा सवि छंडिय । अपडिबद्धविहारसार संजमगुणमंडिय । सावयघरि अजसुहत्थि गुरि गुणपसंस हरषिहिं करिय । अइआदर दिक्कि सुकारणिहिं पाडलपुर तिणि परिहरिय ॥ ५५ ॥ सेणियधारणिपुत्त मेह भन्ज विमुक्किय । वीरपासि वय लिड बुडि निसि संजम चुकिय । पुव्वजम्म परिकहिय पुण वि थिर किडउ वीरिहिं । बहुजइजणसंघट्ट सहइं अइदुसह सरीरिहिं । सो रायसअवयंसमणि मणिन अप्प तृणसम गणइ । चापरइ विजयवेमाणि सुह रहिउ सिद्धि घरअंगणइ ॥ ५६ ॥ चेडयधूयसुजिट्ठसुद्धमहासइअंगुन्भम । विजाहरपेढालपुत्तु विजाबलदुद्दम।। खायगसम्मद्दिष्टि अंग इग्यारइ जाणइ । तह वि विसयरसरंगि अंगि अतिदूषण आणइ । उजेणि उमावेसावसिहि करवि कूड हेला हणिउ । सो सव्वइ सच्चई नरय गय विसयदोस एरिस भणिउ ॥ ५७ ॥ बारवईपुरि पत्त नेमिपहु केवलनाणी । दसदसारनरनाह कन्ह निसुणइ जिणवाणी । सहसअढार मुणिंदचंद विधिवंदणि वंदइ । नरयभूमि चिहुदुरकरुक निम्मूल निकंदइ। तित्थयरगुत्त बंधइ सुदृढ असुहकम्म हेला हरइ । पूजाप्रणामवंदणविणय सगुणसाहुसंगति करइ ॥ ५८ ॥ चंडरुद्द गुरु रुद्दरोसि रीसाल विदित्तउ । उज्जणीउजाणि सगुणसीसिहिंसिउं पत्तउ । नवपरणीत कुमार हसिय पभणइ दिउ दिका । सूरि सीस तस चंपि केस लंचिय दिय सिरका । सो सीसभावि संजम लियइ मग्गि लग्गि गुरु सिर धरी । तिम सहइ घाय दुव्वयण जिम लहइ बेउ केवलसिरि ॥ ५९॥ गयकलभे परिवरिउ सूयर सुमिणइ मुणि दिउ । तिणि अहिनाणि सुसीससहिय पुण कुगुरु अणिठ्ठउ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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