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________________ उवएसमालकहाणयछप्पय निसि चंपइ अंगार सूगविण मन्नइ प्राणिउ । तव अंगारयमद्द सूरि अभविय इम जाणिउ । ते सीस सवे निवपुत्त हूय सूरि करह वरकरभरिउ । तिहिं देखि सयंवरि आवते पुव्वजम्म तरकणि सरिउ ॥ ६०॥ पुप्फवइसुय पुप्फचूल भइणी तह भन्जा । सुमिणि नरयदुह देखी पुप्फचुला वयसज्जा । अन्नियसुयगुरुकन्जि खीणजंघाबल जाणी। आणंती सा भत्तपाण हुय केवलनाणी । पुच्छेइ सूरि मह नाण कहिं सु पण गंगभीतरि कहइ । तव दुठ्ठदेवि उवसग्ग सहि सुगुरु तत्थ केवल लहइ ॥ ६१॥ सिद्धि पत्त मरुदेवि तपिहिंविणु इणि आलंबणि । के वि करंति पमाय ति पणि अच्छेरयसम गिणि । जिणि कारणि पुव्वंमि जम्मि थावरतरुभीतरि । बोरिसंगि बहु अंगि सहिय दुह कम्म विनिजरि । सुहभावि पावि परिमुकमण सरलसार संतोसमय । जिणणि नाभिकुलगरघरणि रिसह झाणि निव्वाणि गय ॥ ६२॥ लद्धि पत्त पत्ते य बुद्ध सुहसिद्धि समाणइ। अच्छेरयसमतुल्ल बुल्ल किवि ते मनि आणइ । निहिसंपत्ति स चित्ति धरवि विवसाय ति छंडइ। सामग्गी परिहरिय करिय पातग निय दंडइ । करकंडुदुमुहनमिनग्गइ चिहुचरित्त चिंतिय सुपरि । धरि धम्म रम्म उज्जमसहिय मुक माय अपमाय करि ॥ ६३ ॥ ससगभसगनिवपुत्तबहिणि सुकुमालिय कुमरी । चंपापुरि चारित्त लेइ रूपिहिं किर अमरी । फिरइ तरुण तस पासि रागि रत्ता गयगमणी। रकइ बंधव बेउ लेइ तिणि अणसण समणी । बहुदिवसि तापि तपि मूरछामुइय जाणि वनि परठवी। ओसहविसेसि सु जि सज करि सत्यवाहि गेहिणि ठवी ॥ ६४॥ मु बहुसीसपरिवारसार सिद्धतविदित्तउ । महुरापुरि सिरिमंगुसूरि रसणिंदिई जिताउ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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