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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अंगपीड अंगमिय सुगुरु सच्चं चिय जंपइ । जागि जीववधि नरय सुणवि सु जि कोपइं कंपइ । अहिनाण जाण सत्तमदिवसि मलप्रवेश मुहि तुझतणइ । दकिन्न दुट्ठभय परिहरिय धम्मवयण मुणि इम भणइ ॥ ३५ ॥
आसि मरीइ मुणिंद भरहसुय नियवय छंडइ। कियपरिवायगवेस रिसहपहुसरिस त हिंडइ । पडिबोहइ बहुलोय दिक जिणपासि लिवारइ ।
अन्नदिवसि अतिकुटिल कपिल तमु वयण विचारइ। तसु शिष्यकाजि फुड नवि कहइ इत्व उत्थि बहु धम्म छइ । भव कोडिसागर भमिउ हुउ वीरजिण तउ पछइ ॥ ३६ ॥
कन्हमरणि बलभद्द तवइ तव तुंगियगिरिसिरि । जाइ सरण इक हरिण रहइ अहनिसि रिषिपरिसरि । कट्ठकजि रहकार पत्त वनि साख कपावई। जिमणवेल जाणेवि लेवि मुणि मृग तहिं आवइ । ओ दियइ दान ओ सुद्धतप ओ बिहुगुण मनि चितवइ । सिरि पडइ डाल समकाल त्रिहुं बंभलोय सुरगति हवइ ॥ ३७॥
पूरणसिठि बिभेलगामि लिइ तापसदिका। दीण खयरजलथलचरह अप्प चिहुभागिहिं भिरका । बारवरिस बहुक छकृतप करइ दयाविण । पायालिहिं चमरिंद चमरचंचाहिव हुय तिण । अभिमाणि सग्गि सोहम्मि गयउ वजदंड पिरकवि पुलिउ । सिरिवीरनाहपयतलि रहिउ तउ सयल वि धंधलु टलिउ ॥ ३८ ॥
सुसुमारपुररोहि कहइ निव सउणसमीहओ। वारत्तयरिषि भीयबालप्रति भणइ म बीहउ । इयवयणह बलि धंधमारि पन्जोय सु जित्तउ ।
नेमित्तिउ भणि हसइ राउ रिसिपासि पहुत्तउ । इम गिहिपसंग सुठ्ठयमुणिह थोडउ अइमालिन्नकर । परिहरई दरि इण कारणिहिं सव्वसंग चारित्तधर ॥ ३९॥
चंदवडिंस नरिंद नयरि साकेइ सुसावय । निश्चिई नियआवासि सुट्ठ सामाइय ठावय ।
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