________________
१०२
प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः घरभणी ऊजाणा; दुवे नाठा, सवे त्रिवाडी बाठा । बुंब पडी राउ धायउ हंसपूठिइं जेतलई, हंस धाई पइठउ कमलमाहि तेतलई । जे वारू, ते पइठा सरोवर माहि तारू; समग्र सरोवर गाहिउ, पणि हंस न साहिउ। निश्वास मेल्ही राउ पाछउ वलिउ, परिघउ परिवार मिलिउ । राणी ते वात जाणी, मूर्छा पामी सप्राणी, सचेत कीधी छांटी छांटी पाणी; राजा आवासी आव्या, कन्यातणुं दुःख धरता छ मास अतिक्रमाया ।
तिसिइ आविउ वसंत, हूउ शीततणउ अंत, दक्षिणदिसितणउ शीतल वाउ वाई, विहसई वणराई ।
सव्वे भल्ला मासडा पण वइसाह न तुल्ल ।
जे दवि दाधा रूंषडां तीह माथइ फुल्ल॥ मउरिया सहकार, चंपक उदार; वेउल बकुल, भ्रमरकुल संकुल, कलरव करई कोकिलतणां कुल । प्रवर प्रियंगु पाडल, निर्मल जल, विकसित कमल; राता पलास, सेवंत्री वास; कुंद मुचकुंद महमहई, नाग पुन्नाग गहगहई। सारसतणी श्रेणि, दिसि वासीई कुसुमरेणि; लोकतणे हाथि वीणा, वस्त्राडंबर झीणा; धवल शृंगार सार, मुक्ताफलतणा हार; सर्वांगसुंदर, वनमाहि रमइ भोग पुरंदर । एकि गीत गवारइं, दान दिवारई; विचित्र वादिन वाजई, रमलितणां रंग छाजई। एकिवादिइंफूल चूटई, वृक्षतणा पल्लव पूंटइं; हीडोलइं हींचई, झीलतां वादिइं जलिई सींचइं; केलिहरां कउतिग जोअइं,प्रीतमंत होयइ । वनपालकि अवसर लही वसंत अवतरियातणी वार्ता कही। राजा सोमदेव आव्या वनमाहि, तेह जि सरोवर देषी कुंअरि सांभली मनमाहि । तेतलई पुरुषि एकई तेह सरोवरहुंतुं एक कमल लेइ रायरहइ दीधउं, राजा हाथि लीधउं । तेतलई तेह जि कमलमध्यहूंती नीसरी रत्नमंजरी कुमरि, दीठी नरेश्वरि । दुःखतणां व्याप चूरियां, लोक आश्चर्य पूरिया। नगरमध्य वार्ता जणावी, राज्ञी कमललोचना आवी । दीठी बेटी, हुइ परमानंदतणी पेटी, परिवरी चेटी। तिहां मांडिया वधामणां, महोत्सवि करीसुहामणां; विचित्र वादिन वाजिवा लागा। ते कवण कवण । वीणा विपंची वल्लकी नकुलोष्टी जया विचित्रिका हस्तिका करवादिनी कुब्जिका घोषवती सारंगी उदंबरी त्रिसरी झंषरी आलविणि छकना रावणहत्था ताल कंसाल घंट जयघंट झालरि उंगरि कुरकचि कमरउ घाघरी द्राक डाक ढाक बूंस नीसाण तांबकी कडुआलि सेल्लक कांसी पाठी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org