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प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
कामदेव जिम चलइ नही वीतरागह धर्म | वीरनाहु जिणवरु दियइ तसुनी ऊपम्म ॥ ९७ ॥ सदाचारु सुविचारु कुसल अनइ निरहंकारु । शीलवंत निकलंक अनइ दीनगणआधार | जिनह वचनि तिम सातधातु जीह श्रावक भेदी । जाणे तीह गर्भवासवेलि मूलहुंति छेदी ॥ ९८ ॥ जाणइ ऊचितु सहू काय साच विवहार । त्रिधा सुद्धि मनमाहि वसह इकु निश्वउ सारु । उत्सर्ग अनइ अपवाद एह जाणइ सविसेषू । भणियइ श्रावकतणी भावीय मूलिइ सा जीह एहु विवेक ॥९९॥ जे पुण श्रावकतणा भविय कहीयइ जिणसासणि ।
ते गुणु जिण भणइ श्रावियह जाणेवा नियमा ॥ १०० ॥ त्रिधा सुद्धि वीतराग वसइ मनभीतरि जीह । सुलहउ सिवपुरतणउ वासु तो श्रावक तीह | पढइ गुणइ जिणवयणु सुणइ संवेगि संपूरिय । सील सनाहि पहिरिह क्रमपरि सूरी ॥ १०१ ॥ ईहं तु श्रावकतण क्षेत्र वावु सवि दीस | जे तुम्हि भवियर अच्छइ काइ धर्मतणी जगीस । जिम भरयेसरि वावी रिससरनंदणि । गृहवासपरि ज्ञानु जासु पसरीउ तिहुयणि ॥ १०२ ॥ तिम तुम्हि वावेउ भलीपरि भविउ इड खित्तु । लहिसउ फल निरवाणनयरि तिम तिहां बहूतु । पहिलं कीजइ महाविनउँ गुणश्रावक जाणी । पाय पषालीय सहहाथि लेउ कुंकुम वाणी ॥ १०३ ॥ पाछइ भोजनुं भलीयभक्ति सविवेकिहि सहियउ । दीजइ श्रावकश्राविकां एउ आगमि कहिउ । ऊपर ऊगरि फूल पान कापड अनुमानिय । दीजइ निजभक्ति भलां गरूयइ बहुमानि ॥ १०४ ॥ भरसर जिम श्रावकह दीजइ आवासे । लोणा जे जिनवयणि अछइ घणगुणह निवास ।
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