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सप्तक्षेत्रिरासु
सुरहउ सख्यउ बावची अनइ कल्हार । सहुयइ सोहइ वीतराग सामी सुरसार । नीलउनी नागवेलि पानमाहि जा सोहइ । ईणपरि पूजइ सामिसाल नरनारी धन्न ॥ ४० ॥ एहि रामणीयइ पूज तोइ नीकी सोहंती। तउ नक्षत्रहतणी माल दीवाशू चंगी य । खेलीयइ माहि भुयण जिणबिंबहकेरी। आणी कुसुमे पूजियइ ते सवि संखेवी ॥ ४१ ॥ समोसरणु जो पूजीयए जो तिन्निपयारूं । चिहु पखि दीसइ वीतरागु जहि तिहुयणसारू । तउ पूजा नीपन्नी पूठि धूपउटजउ लीजइ । वीजणिय ऊखेवितु गुरु तहि घंटी वाजइ ॥ ४२ ॥ धूप अगुरु सातिवारेसि डाबडी जि कीजइ । दंडासणे अतिख्यडे जिणभुवणु पुंजीजइ । आखेरिहिं मंजूस भली अन्नय चउकीवट । ढोइउ आखे करउ भली य मंगलीक आठ य ॥ ४३ ॥ वडमाणु वरकलसु अनइ भद्दासणु छत्तू । दप्पणु नंदावरतु तहि साथिउ श्रीवत्सू । अठ मंगलीक तीण पाटि भरियइ जिनआगइ। इणपरि जं धन वेवीइ ए तं लेखइ लागइ ॥ ४४ ॥ दीवा कीजइ जिनभुवणि छत्रत्रउ दीजइ । चमर ढलंते वीतराग तेहि धनु वेवीजइ । ते उलोच कारावियइ जिणभुवणमज्झारे । वाचोटा मरवर अ लंब कीजइ जिनबारे ॥४५॥ तोरण वंदुरवाली बारि साषि जिणभुवणि । पूजा जोइ सहु कोइ आवइ तीणि खिणि । पूजा जोइवा जिणह भुयणि तोइ सुहगुरु आवइ । तउ संघिहि आग्रह करीउ तीछे रहाविय ॥ ४६॥ पडषउ वेला एक प्रभु अहां उच्छवु होसिइ । संघवयणु मानेवि सुगुरु निसि सिखं पइसई ।
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