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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अतिसुगंधिहि सिरखंडिहि कपूरिहि आंगी। कीजइ सामी वीतराग प्रभु नवनवभंगी। कस्तूरिहिं कुंकुमिहि तिलउ निलाडिहिं सामी। ते पुण वितपति करइ भली अतिनीकइ धामी ॥ ३२ ॥ तउ आभरण चडावियइ सोव्रणमय घडिया। हीरे माणिकि मोतीए बहुरयणे जडिया। अतिख्यडउं आभरणउ भलउं कीजइ संपूरउ । नीकउं सिहर पूठिउं हूतलि अनइ मसूरउ ॥ ३३ ॥ कानिहि कुंडल सिरि मुकुटु किरि ऊगिउ भाणूं। जाणे तिहूयणि सयल लोक अभिनवउं विहाणूं। उरह माल कंठि सांकल मुक्तावलिहार । नयणि निहालिन वीतरागु ख्यडउ सुरसार ॥ ३४॥ बाहुजुयलि बेउ बहिरखा अतिनीका सोहई । टीलूउं श्रीवत्सु साख्यार भवियण मणि मोहइ । सोनाकेरी पालठी कीजइ जिनपत्ते। सोहइ बीजउरउं रूयडउं सामीजिणहत्थे ॥ ३५ ॥ इणि विवेकिहि बहु य विशेषिहि जिणवरपूज सलकणी य । करउ मनरंगिहि नवनवभंगिहि श्रीसंघनयणसुहामणी य ॥३६॥ एती अ जोइ आभरणतणी पूजा नीपन्नी। हिव आरंभिसु जिणह अंगि सुरहां कुसमन्नी। कीजइ कुसमे चंगेरीयए पूज कारणि ख्यडी। वावरीइ दीहु देवकाजि अन्नइ छाजी छवडी ॥ ३७॥ रायचंपु केतकी जाइ सेवत्री परिमल । बउलि सिरीवालउ वेअलु अनु करणी पाडल । नीलउनी विचि पूजमाहि सोहइ अतिचंगी। वितपति दीसइ रूयडे तिणि नवनवभंगी ॥ ३८ ॥ नीकउ कणयरु पूजमाहि वरणकि सोहंती। परिमलु पसरइ कुसुमजाति पाछइ विहसंती। कुंदु अनइ मुचुकुंदु वालु जूई परिजाते। एसे कुसुमि करउ पूज तुम्हि तिहुयणपत्ते ॥ ३९ ॥
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