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पृथ्वीचन्द्रचरित्र
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हिव प्रभाति दासीमहिलीए राउ वधाविउ, स्वामी तम्हारे पुत्र आविउ । राजा वधामणी दीधी, नगरमाहि सर्व महोत्सवतणी पद्धति कीधी। अलंकरिउ प्राकार, शृंगारियां प्रतोलीद्वार । मंच अतिमंचतणी रचना हुई, स्वर्गपुरीतणी शोभा लई। ध्वजपताका लहकई, पुष्पपरिमल बहकई । नाचई पात्र, राजाभवनि आवइं अक्षतपात्र । सोमाई भणतां आवई छात्र, लोक अलंकरई आभरणि गात्र, उत्सव करिवा एहइ ज वात । तीणि वेलां न ऊऊई कोरण, बांधीयई तोरण; बांधीयइं वंदरवाल, उत्सव विशाल; गुलघीउ लाहीयई, मन ऊमाहीयइ । ईणि युक्ति जन्ममहोत्सव हुआ । नामगरणतणइ अवसरि माताहुई डोहलइ धर्म बुद्धि हुई। एहभणी धर्म इसिउं नाम दीधउं, परमेश्वरि रमलि करतां बालपणुं लीघउं, यौवनवयि राजकन्यातणउ पाणिग्रहण कीधउं । अढई लाष वरस कुमारपणउं पाली पंचासबरस राज्यलक्ष्मी पामी, पछइ विरक्तियुक्त हूउ स्वामी । नवविधलोकांतिकदेवतणी वीलतीलगइ सांवत्सरिकदान दीधउं, पछइ महोत्सव सहित चारित्र लीधउं। बि वरस छद्मस्थ काल अति क्रमी, केवललक्ष्मी पामी; विहारक्रम करई, भव्यलोक तारइं।
हिव राजा पृथ्वीचंद्र अनइ सोमदेव उद्यानपालकरहइं साढाबारलाख सुवर्णदान देई समस्तपरिवारसाथिई लेई परमेश्वर नमस्करिवा सांचरिया, सकललोक ऊलटि धरिया। पृथ्वीरहइं अलंकरण, दीठउं स्वामीतणउं समोसरण । किसिउं ते । समग्र देव आवई, समोसरण नींपजावई । तां पहिलं वायुकुमारदेवतानिर्मित संवर्तक वायु विस्तरइं, ते तृण काष्ठ कचवर हरई, आकासि मेघपटल पसरई, गंधोदति वृष्टि करई, फूलपगर भरइं । गरूअउं रत्नमय पीठ बाधीं ऊपरि जानुप्रमाण पंचवर्ण कुसुम वरसई, चिहुं दिसि दिव्य परिमल विलसई। रत्नमय सुवर्णमय रूप्यनय त्रिन्नि प्रकार रूपि करी उदार, अनेक प्रकार; मणिरत्नसुवर्णमय कउसीसां सदाकार, च्यारि प्रतोलीद्वार । तिहां बिहु पासे उच्चैस्तर सुवर्णमय स्तंभ, ऊपरि मणिमय कुंभ; इंद्रधनुषमानमूरण, रत्नमय लोरण; प्रत्यक्ष जिसी मांगलिक्यनी पालि, इसी चंदवालि । अनेकि विचित्र, विशाल छत्र; उदारस्वरूप, कनकमय पूतलीतणां रूप; जेहे लिषित सिंह शार्दूल गज, इस्यां निर्मल नीरज, पंचवर्ण ध्वज । इस्या समोसरणविचालि, मणिबद्धपीठि विशालि; सकलमांगलिक्यमुख्य, गरूउ अशोकवृक्ष; जिसिउ प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष, इसिउ बारगुण चैत्यवृक्ष । तेहतणी छायां रत्नमय
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