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________________ ११० प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः जेतलं अंतर हंस नइ काग; जेतलइ लूण नइ कपूर, जेतलइ षजूया नइ सूर; जेतलइ डाकिली नइ तूर, जेतलइ खाल नइ गंगापूर; जेतलइ साधु नइ चोर, जेतलइ हार नइ दोर; जेतलइ गजेंद्र नइ ससा, जेतलइ गुरुड नइ मसा; जेतलइ कोडि नइ सवा विशा, जेतलइ काविला घाट नइ गोहीस; जेतलइ मोटा वृक्ष नइ रोहीस, जेतलइ व्यवसाय नइ कुठाकुर सेव; तेतलूं अंतर अपरदैवत अनइ श्रीसर्वज्ञदेव। एह कारणि इसउ मनि निश्चियु आणिवउ । जिम श्री सूर्यपाषइ दिवस नही, पुण्यपाषइ सौख्य नहीं, पुत्रपाषइ कुल नही, गुरूपदेशपाषइ विद्या नही, हृदयशुद्धिपाषइ धर्म नही, भोजनपाषिइ त्रिपति नही, साहसपाषइ सिद्धि नही, कुलस्त्रीपाषइ घर नही, वृष्टिपाषइ सुभिक्ष नही, तिम श्रीवीतरागपाषइ मुगति नही । अनइ जिहां हिंसा, तिहां नही धर्मतणी प्रशंसा । जेह कारणि इसिउं कहिई । जिम विलंब विणसइ काज, कुठकुरि विणसइ राज, मार्जारिप्रचारि विणसइ छाज, अणबोलिई विणसइ व्याज; पडपि विणसइ दान, कुसंगति विणसइ संतान, स्वरपाषइ विणसइ गान, लूइं विणसइ मइपान, व्याधिई विणसइ वान, कुमरणि विणसइ अवसान; कुपंडित विणसइ छात्र, क्षयणि विणसइ गात्र; पीपलि विणसइ प्रासाद, सिंदूरि विणसइ साद; आकदूधि विणसइ नेत्र, तीडे विणसइ नीपनु क्षेत्र; चीभडी विणसइ कणकनु वाक, विषइप्रयोगि विणसइ रसवतीतणउ पाक; वरसालइ विणसइ शस्त्र, षयरी विणसइ वस्त्र; जिम कुव्यसनि विणसइ सत्कर्म, तिम जीवहिंसा विणसइ धर्म । राजा पृथ्वीचंद्र समरकेतु श्रीपतिप्रतिइ कहिइ छइ । सांभलु परमार्थ हिव, टालिउ मिथ्यात्वतणी टेव; आदर द्याधर्म नइ श्रीअरिहंत देव, करउ सद्गुरनी सेव; जिम टलइ पापकर्मतणा लेव । ए वार्ता सांभली तीह बिहुँरहिई मिथ्यात्वतणी भ्रांति टली, जैनदीक्षा लेवा हुई मनि रुली । तेतलइ भाग्ययोगि दैवसंयोगिइं चारण श्रमणमाहत्मा एक तिहां आविउ, नेहे सविहु तेहरहइं प्रणाम नीपजाविउ । पगि लागी, दीक्षा मागी; तीणि दीधी, वांछितवार्ता सीधी । तिवारपूठिई तेहे ऋषीश्वरे राजा मोकलावी विहारक्रम कीधु, नरेश्वरि आघउ पीयाणउ दीधउ। पहिलं पहुतु पद्मपुरि, लोक हर्ष पमाडिया भलीपरि । तिहां परमहंस प्रधान स्थापिउ, कर्णवारनु भार आपिउ।हिव राजा पृथ्वीचंद्र तेह नगरहूंता साते पीयाणे अयोध्या नगरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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