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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः
त्रीजउ क्षेत्रु इम वावउ निरुपम लियउ लाभु हुँतातणउ । जिम अट्ठकम्म गंजीउ भवदुह भंजीउ सिद्धिनयरि खेमिइ मुणउ ॥६९॥ हिव श्रीश्रमणसंघभत्ति करउ जीव तुम्हि यथासक्ति । पहिलउ कीजइ तोइ पावयणा अनी य विशेषिहि आयरियठवणा॥७०॥ इणपरि श्रमणुक्षेत्रु वावीजइ निश्चय भवसायरु तरीजइ। जे जिनवरि मुनि कहिया आगमि क्रियासार अनइ खरतर संजमि॥७१॥ पंचमहव्वयभारु धरंता दस अनु च्यारि उपगरण वहंता । नव कल्पिइ विहार करंता ते मुनि भणियई चारित्तवंता ॥७२॥ जे मुनि पंच समिति छइ समिता बिहुहि गुप्तिहि जे अछह गुपिता। सीलंग सहसअढार वहंता ते मुनि भणियइ उपसमवंता ॥ ७३ ॥ जे मुनि निम्मल निरहंकार सदाचार दीसइ सुवियार । जे धुरि जूता गणगच्छभारा ते मुनि भणिया गुणह भंडारा ॥ ७४ ॥ ईणपरि भल्ला क्षेत्र विशेषि दियउ दानु तुम्हि भवि हरखि । जिम तु छूटउ भवना भार पामउ सिवसुखु निरुपमसारु ॥७५ ॥ जे जिनआण सदा छइ रत्त बावीस परीसह सहइ अपमत्त । जिनआदेसु धरइ सिरिऊपरि ते जि महामुनि नमीयइ सुरवरि ॥७६ ॥ बईतालीसदोषसुविसुद्धउ लियइ आहारु जे जिणवरि दिठ्ठउ । इंदियविषयव्यापिनवि गूचइ तवि नीमि संजमि खण विनमूचइ ॥७॥ किसुंधणउं हउं कहउ विचारो मुनिरयणगुण न लहउं पारो। अनुव्रतु चालइ जे जिनआण ते मुनि भणीयइ मेरुसमाण ॥ ७८ ॥ प्रसंसीइ मुनि जिहि गुणि सहिया ते गुण जिणवरि श्रमणी कहिया। एकु विशेषु पुण श्रमणी दीसइ वहइ उपगरण तोइ पंचवीसइ ॥ ७९ ॥ चालइ खड्गधार तोइ ऊपरि सीलवंत ति नमीइं सुरवरि । महासती जे छइ अपमत्त धारा भणइ हूं तेहि पवित्त ॥ ८० ॥ जीह जिनआण हिथइ परिणमी ते श्रमणी तोइ मेरह समी। जे सिद्धी जिणआण करती धनु धनु श्रमणी ते महासती ॥ ८१ ॥ जिणसासणु जेहि य इम उजालिउ कसिमल पावपंकु पखालिउ । एउ साहू अनइ श्रमणी खित्त वाविन धामी हुईउ सवित्त ॥ ८२ ॥ जा हिवडांतूं संपति अच्छइ इसीय वराप न पामिसि पछइ। जउ भलखेत्रिहि वित्त नवाविसि पाछइ परभवि किसउ लुणाविसि॥८॥
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