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________________ 000000000 प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः एहु रासु जो पढइ गुणइ नाचिउ जिणहरि देइ । श्रवणि सुणइ सो बयठऊ ए तीरथ ए तीरथ ए तीरथजात्रफलु लेई ॥१०॥ इति श्रीसंघपतिसमरसिंहरासः॥ सिरिथूलिभद्दफागु। पणमिय पासजिणंदपय अनु सरसइ समरेवी। थूलिभद्दमुणिवइ भणिसु फागुबंधि गुण केवी ॥१॥ अह सोहगसुंदरूववंतु गुणमणिभंडारो । कंचण जिम झलकंतकंति संजमसिरिहारो। थूलिभद्दमुणिराउ जाम महियलि बोहंतउ । नयररायपाडलियमाहि पहुतउ विहरंतउ ॥२॥ . वरिसालइ चउमासमाहि साहू गहगहिया । लियइ अभिग्गह गुरह पासि नियगुणमहमहिया । अजविजयसंभूयसूरि गुरु वय मोकलावइ । तसु आएसि मुणीस कोसवेसाघरि आवइ ॥३॥ मंदिरतोरणि आवियउ मुणिवर पिरकेवी। चमकिय चित्तिहि दासडिय वेगि जाइ वधावी । वेसा अतिहि ऊतावलि य हारिहि लहकंती आविय मुणिवररायपासि करयल जोडती ॥४॥ भास-धर्मलाभु मुणिवइ भणिसु चित्रसाली मंगेवी । रहियउ सीहकिसोर जिम धीरिम हियइ धरेवी ॥५॥ झिरिमिरि झिरिमिरि झिरिमिरि ए मेहा वरिसंति । खलहल खलहल खलहल ए वाहला वहति । झबझब झबझब झबझब ए वीजुलिय झबकइ । थरहर थरहर थरहर ए विरहिणिमणु कंपइ ॥ ६ ॥ महुरगंभीरसरेण मेह जिम जिम गाजते । पंचबाण निय कुसुमबाण तिम तिम साजते । जिम जिम केतकि महमहंत परिमल विहसावइ । तिम तिम कामि य चरण लग्गि नियरमणि मनावइ ॥ ७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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