SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १२९ पडावई सत्कारि साद; पालइ सम्यक्त्व, जाणइ नवतत्त्व; करइं सामायक सार, स्मरइ पंचपरमेष्ठि नमस्कार, बे कुमार इसीपरि भरइं पुण्यभंडार । अन्यदा प्रस्तावि द्रोणि राजां तीह बिहुँहुइं राज्य दीधउं, आपणपइं राज्ञी. सहित चारित्र लीघउं । निर्मल चारित्र पाली भावविशेषि पातालि बलीन्द्र अवतरिउ, राणीइं इंद्राणि थईनइ तेहू जि अणसरिउ । हिव पूरणतणइ पद्मश्री इसिइ नामि हुई कलत्र, जे महासचरित्र । ते सागर पूरण पद्मश्री पुण्य करी पहुता देवलोकि, सौख्य भोगवी अवतरिया मनुष्यलोकि । सगरतणउ जीव हउ तु सोमदेव नरेन्द्र, पूरणनउ जीव हूउ पृथ्वीचंद्र। पद्मश्री ईहां रत्नमंजरी अवतरी। पूर्वतगडं धर्म फलिउ, सर्वसंयोग मिलिउ। बिहुं नरेश्वरि ईणिपरि उपदेश सांभलिउ, श्रीधर्मनाथतीर्थकरि वली कहिउं। हिव सांभलउ जे पूछिया संदेह, तेहनु कीजइ छेह। जिसिंइ समइ रत्नमंजरी सरोवरतणी पालिइं पितातणइ उत्संगि बइठी, कुणरहइं देवातणी चिंता पइठी; तिसिइ अवसरि, बलींद्रदानवेश्वरि; ज्ञानिप्रमाणि, पूर्व जाणी, पुत्रपृथ्वीचंद्रनिमित्त राषिवा रत्नमंजरी हंसरूपिइं अपहरी आपणइ कन्हइ आणी । छमास पातालि स्थापी, पछइ अवसरि पाछी आपी। राजा पृथ्वीचंद्रहुइं स्वप्न दीधउं, अटवी अनइ संग्रामांगणि महासान्निध्य कीधउं । अनइ स्वयंवरि जेतलइ धूमकेतु राजां वेतालांधकार विस्तारीनइ रत्नमंजरी रथि घाती, तेतलई बलींद्रतणी इंद्राणी ते मेल्हिउ निपाती।छ प्रहर पातालि राषी, प्रभाति प्रकट करी दाषी; उहे दिषाडिउ पूर्वभवस्नेह, एतलई टलियां सवे संदेह । अहो पृथ्वीचंद्र ताहरूं विशेषवंत छइ भाग्य, अद्भुत सौभाग्य । जेह कारणि गृहस्थवेषि हाथियइं चडतां ईणइ जि भवि उपजिसिइ केवलज्ञान, एह भणी ए भाग्य प्रधान । सोमदेवहुई जीजइ भवि मुक्ति, इसी छइ युक्ति । ए वार्ता मनि धरी, श्रावकयोग्य धर्म आदरी, परमेश्वर नमस्करी; बे नरेश्वर सपरिवारि स्वस्थानकि आव्या, परमेश्वरि विहारक्रम नीपजाव्या। हिव राजा पृथ्वीचंद्र सुसरउराउ मोकलावी रत्नमंजरीसहित आपणइ पुहिठाणपुरि पाटणि आव्या, प्रधानि प्रवेश महोत्सव कराव्या । सकल लोक हाट पाटण काज काम परिहरी आभरण चूटते, वेणीदंड छूटते; पटउले फाटते, घाटडे विणसते; धसमसाटि जोइवा धाइउ राजा महोत्सवसहित आपणइ आवासि आइउ । रत्नमंजरी पट्टराणी स्थापी, कीर्तिइं जगत्रयी व्यापी। राज्यसौभाग्य भोगवतां अवसरि रत्नमंजरी महीधर इसिई नामिई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy