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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः
पुत्र जन्मिउ । ते सर्वांगसुंदर, रूपिई पुरंदर विवेकबंधुर राज्यधुरंधर सत्पुरुषसिंधुर नामि महीधर प्रवर्द्धमान हूउ । राजापृथ्वीचंद्ररहई राज्य करतां नवलाष नवाणवर सहस्र नवसई नवोत्तर वरस अतिक्रम्यां । तिसिइ अवसर कानडसन राउ सिंहकेतु इसिहं नामिई अकस्मात् पुहठाणपुरि पाटणिऊपरि चडी आविउ, लोकरहई आतंक ऊपजाविउ । तत्काल चरपुरुषि पृथ्वीचंद्ररहई जणावि । ते सांभली राजापृथ्वीचंद्र कोपि करी करवाल कलालतु सामहिउ, सुभटवर्ग गहगहिउ; भंभा वाजी, गगनांगण रहिउ गाजी । राजा आप जेतलई हाथि चडिउ, तेतलई मनि विमासण पडिउ । रे आत्मन् हुं बाह्यवइरी पूठि धाउं, अंतरंगवइरी पूठि न धाउं । कुण ए बुद्धि, किसी शुद्धि, जीत जोईयर क्रोध, जेहतर चालइ विरोध; जीतु जोईयइ मान, जेहहुईं पर्वतन उपमान; जीती जोईयह माया, जेहतु पामीयह स्त्रीतणी काया; जीतु जोईयइ लोभ, जेहतु संसारि समयक्षोभ; जीतु जोईयइ काम, जेहतु फेडई पुण्यतण ठाम । ईणिपरि नरेश्वरहुई चीतवतां ऊपनजं शुक्लध्यान, तत्काल ऊपनउं केवलज्ञान । आव्या देव, करई सेव; वइरी समिउ, आवी नमिउ; वाजई वादित्र, महोत्सव विचित्र । देवे वेष दीघउ, राजऋषि लीधउ; हंसजमलि, बइठउ सुवर्णकमलि; दिइ उपदेश, हउ पुण्यतणउ निवेश । एके आदरिडं सम्यक्त्व, एके श्रावकत्व; एके संयम, एके नियम । ईणिपरि लोकहुई लाभ देई पृथ्वीमंडलि विहारक्रम करी पृथ्वीचंद्र राजा सिद्धिसाम्राज्य ली, तेहतणइ पुत्रि महीधर पहुठाणपुरि अखंड प्रतापि राज्य कीधरं । पृथ्वीचंद्रनरेश्वरतणउं चरित्र सांभली, मनतणी रली, बली; वली, विवेकवंति पुण्यवंत लाभ लेवउ । जिसिहं पुण्यतणा प्रभावतउ सकल श्रीसंघहुई श्रेयकल्याण ऋडिवृद्धिपरंपरा संपजई ।
श्रीमदञ्चलगच्छे श्रीगुरुमाणिक्यसूरिणा । पृथ्वीचन्द्रनरेन्द्रस्य चरित्रं चारु निर्मितम् ॥
संवत् १४७८ वर्षे श्रावण सुदि ५ रवौ पृथ्वीचन्द्रचरित्रं पवित्रं पुरुषपचने निर्मितं समर्थितम् । यावन्मेरुर्मही यात यावचन्द्रदिवाकरौ ।
वाच्यमानो जनैस्तावद्ग्रन्थोऽयं भुवि नन्दतात् ॥
इति श्रीअञ्चलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिकृते श्रीपृथ्वीचन्द्रचरित्रे वाग्विलासे पञ्चम उल्लासः ।
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