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________________ ४४ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः सांझ परणी प्रहह जाम नीछइं व्रत लेसिउं ॥ १९ ॥ माय दुल्लंघीय तण वयणि परिणेवउ मन्नीउ । आठइ कन्या एकवार परिणीय घरि आवीउ । आठइ परणी मृगनयणी बूझवणइ बइठउ । पंचसएचोरेहंसिउं प्रभवउ घरि पठउ ॥ २० ॥ नीद्र अणावीय सोयणीय आभरण लीयंता । ते सवि अछई थंभीया टगमग जोयंता । प्रभवउ भणइ हो जंबुसामि एक साठि ज कीजइ । बिहुं विज्ञावडई एक विज्ज थंभणीय ज दीजइ ॥ २१ ॥ हिव हूं कहि नवि ज लेवि पुण किसउं करेसो । आठ परिणी ससिवयणी नोछई व्रत लेसो । रूपवंत अणुरन्त रमणि एउ एम चएसिइ | अहंतासुतणीय आस मुझ जीव करेसिइ ॥ २२ ॥ एवड्डु अंतर नरहं होइ प्रभवउ चिंतेई । संवेगरसिज गयउ मन प्रभवउ पूछेई । सिरिमणिऊमाहीया ह तम्हि संजम लेसिउ । करुणई विलवई माइबप्प किम किम मेल्हेसिउ ॥ २३ ॥ इंदियाल नवि जाणीह ए को किम होइसिह । अढार नात्रां एकभवि जंबूस्वामि कहेई । पितर तम्हारा जंबुसामि किम तृपति लहेराई । पिंड पes लोहंतणइ ए ऊभा जोसि ॥ २४ ॥ बाप मरवि भई हु पुत्रजन्मि हणीजइ । इणपरि प्रभवा पितरतृप्ति तिथि धीवरि कीजइ । अहंतासुतणीय आस हूं तउं छांडेसिउ । तिण करमणि जिम कलत्र भणइ अवतरता करेशिउ ॥ २५ ॥ तम्ह रूपहिं हउं लोभ करडं देषि मणहर ख्यडउं । हथकडेवर काग जिम भवसागर निवडउं । बीजी कल कवि नाह जइ अम्ह छंडेसिउं । तिणि वानरि जिम पच्छुताव बहु चींति घरेसिउं ॥ २६ ॥ बिंदुसमाणउं विसयसुरक आदर किम कीजइ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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