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जंबूसामिचरिय जा मई मूंकी सुरह रिद्धि या कीणइं लेखई । तु चिंताविउ सिवकुमार अथिरउ संसारो। भवनिन्नासण लेइसिउं अम्हि संजमभारो ॥ १२ ॥ माइ न मेल्हई एकपूत सो मुनिहिं थाई। दृढधम्मेण सावरण जायवि बोलावीउ । पारि पारि दृढधम्म भणइ अम्ह भणीउ कीजइ । दुल्लभ बेडी मणुयजम्म जतनिहिं राषीजइ ॥ १३ ॥ कहइ धम्म सो मुणिहिं जाम तसु वयण मनेई । बिहुं उपवासहं पारणइ ए आंबिल पारेई । फासुयवेसण भत्तपाण दृढधम्मो आणइ । माहि थीउ अंतेउरहं सो सील ज पालइ ॥१४॥ नवकरवालीतीषधार करमं सवि सूडइ । निहणइ मोहकंदप्पराउ भवपरीयण मोडइ । बारहं वरसहंतणइ अंति आऊचूं पूरीजइ । पंचमदेवलोकि सिवकुमार सो देव ऊपजइ ॥१५॥ कवणह नारिहितणइ उयरि एह जीव चवेसिइ । कवणह बापहतणइ कुलि एउ मंडण होसिइ । उसभदत्तसेठिहिं घरणि धारणिउरि नंदण । होसिइ नामिइं जंबुसामि तिहुयणि आणंदण ॥ १६ ॥ ऊठीउ देव अणाढिउ हरषिइं नाचेई। धनु धनु अम्हतणउं कुल एसु पुत्त होसिइ । चविउ विमाणह बंभलोय धारणिउरि आविउ । सुमिणप्रभाविइं उसभदत्त अंगेहि न माईउ ॥ १७ ॥ जायउ पुत्रु पहाण जाम दसदिसि उदयंतउ । वडइ नामिहिं जंबुसामि गुणगहण करंतु। अठवरीसउ हूउ जाम गुरुपासि पहूतु । ब्रह्मचारि सो लियइ नीम भववासविरत्तउ ॥ १८ ॥ जोयणवेसह पहुतु जाम कन्ना मग्गावइ । बीजा धूया पाठवए तस विवारा वय । मन देजिउं तम्हि अम्ह देसु अम्हि इसउं करेशउं ।
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