SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ईहं सहू को एक मानि रंको अनु राओ ॥४॥ सामिय वंदिउ वडमाण सेणीयं पूछीई। जइ पसनचंद हिव करेइ काल कीछे ऊपजइ । मन जाणेविण पसनचंद सामी बोलीजइ । नरगावासह सातमए नींछई ऊपजइ ॥५॥ बीजी पूछहं मणुय होइ त्रीजी अणउत्तर । दुंदुहि वाजी देवकीय चालीय तिहिं सुरवर । सेणिउ पूछइ सामिसाल कांहां जाईजइ । केवलमहिमा पसनचंद देवे कीजीजइ ॥६॥ सेणिउ मनि चिंताचडिओ सामी वलि पूछ।। जं प्रभु तम्हे बोलीयउं तं अम्हे न बूझिउं । सेणिय तम्हि बूझियउं तअंतिस त होए। मणपरिणामह विसमगति जीवहं पुण होइ ॥७॥ केवलनाणउ भरहखेति केतूं बरतेसिइ । सामी दाबीउ विज्जुमालियउ छेनु होसिइ । चउसहि देवे परियरिउ चउदेवे सहीउ । अतिसई दीसइ देहकंति सेणीचिति चडीउ ॥८॥ देवहं नवि हुइ एहु नाणु यउ किम होएसिइ । आजूना दीह सातमए इणि नयरि चवेसिइ । किंकारण पुण एहकंतिं किंख्यह अतिसउ । कवणह धम्महतणइ भावियउ देवअइसउ ॥९॥ ठवणि-महाविदेहतणइ विजय वीतसोय नयरी। पद्मरथ नामेण राउ वनमाला घरणी। तास ऊयरि ऊपन्न पुत्रु सुरलोयहहूंतु । वडइ नामिइं सिवकुमार बहुगुणिहिं संजुत्तउ ॥ १० ॥ पुत्वभवंतरतणइ नेहि सागरमणि पहुतु । आवीउ बंदण सिवकुमार बहुभत्तितुरंतउ। हउं जाणउं तू मुणिहिं नाह कीछे महं दीठउ । एह जन्मह तइयभवि मुझ भाइ य हूंतउ ॥ ११ ॥ ऊहापोह करेहि जाम पाछिलउ भव देषइ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy