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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः
ईहं सहू को एक मानि रंको अनु राओ ॥४॥ सामिय वंदिउ वडमाण सेणीयं पूछीई। जइ पसनचंद हिव करेइ काल कीछे ऊपजइ । मन जाणेविण पसनचंद सामी बोलीजइ । नरगावासह सातमए नींछई ऊपजइ ॥५॥ बीजी पूछहं मणुय होइ त्रीजी अणउत्तर । दुंदुहि वाजी देवकीय चालीय तिहिं सुरवर । सेणिउ पूछइ सामिसाल कांहां जाईजइ । केवलमहिमा पसनचंद देवे कीजीजइ ॥६॥ सेणिउ मनि चिंताचडिओ सामी वलि पूछ।। जं प्रभु तम्हे बोलीयउं तं अम्हे न बूझिउं । सेणिय तम्हि बूझियउं तअंतिस त होए। मणपरिणामह विसमगति जीवहं पुण होइ ॥७॥ केवलनाणउ भरहखेति केतूं बरतेसिइ । सामी दाबीउ विज्जुमालियउ छेनु होसिइ । चउसहि देवे परियरिउ चउदेवे सहीउ । अतिसई दीसइ देहकंति सेणीचिति चडीउ ॥८॥ देवहं नवि हुइ एहु नाणु यउ किम होएसिइ । आजूना दीह सातमए इणि नयरि चवेसिइ । किंकारण पुण एहकंतिं किंख्यह अतिसउ ।
कवणह धम्महतणइ भावियउ देवअइसउ ॥९॥ ठवणि-महाविदेहतणइ विजय वीतसोय नयरी।
पद्मरथ नामेण राउ वनमाला घरणी। तास ऊयरि ऊपन्न पुत्रु सुरलोयहहूंतु । वडइ नामिइं सिवकुमार बहुगुणिहिं संजुत्तउ ॥ १० ॥ पुत्वभवंतरतणइ नेहि सागरमणि पहुतु । आवीउ बंदण सिवकुमार बहुभत्तितुरंतउ। हउं जाणउं तू मुणिहिं नाह कीछे महं दीठउ । एह जन्मह तइयभवि मुझ भाइ य हूंतउ ॥ ११ ॥ ऊहापोह करेहि जाम पाछिलउ भव देषइ ।
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